जानें, कुंभकरण के पुत्र भीम के नाम पर क्यों रखा गया इस मंदिर का नाम

Edited By Jyoti,Updated: 14 May, 2019 04:01 PM

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भारत में भगवान शंकर के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं जो बहुत ही रहस्यमयी है। आज हम आपको भोलेनाथ के ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110 कि.मी दूर सह्याद्रि पर्वत पर स्थित है।

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भारत में भगवान शंकर के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं जो बहुत ही रहस्यमयी है। आज हम आपको भोलेनाथ के ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110 कि.मी दूर सह्याद्रि पर्वत पर स्थित है। जिसे भीमाशंकर के नाम से जाना जाता है। ये भारत में स्थापित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रमुख है। अन्य ज्योतिर्लिंगों की तरह इस मंदिर में भी भगवान शिव जी शिवलिंग रूप विराजमान हैँ। कहा जाता है यहां स्थित शिवलिंग काफी बड़ा और मोटा है, जिस कारण इसे मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के समीप भीमा नदी बहती है जो कृष्णा नदी में जाकर मिल जाती है। मगर आप में से बहुत कम लोग होंगे जो भीमशंकर नामक ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व जानते होंगे। तो चलिए हम आपको बताते हैं इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी पौराणिक कथा।
PunjabKesari, Bheemashankar Temple at Maharashtra, Bheemashankar Temple Pune, Sahyadri Mountain, Sahyadri Parvat, Lord Shiv ji, Kumbhakarna, Bheemशास्त्रों में वर्णित पौराणिक कथाओं के एक बार कुंभकरण को कर्कटी नाम की एक महिला पर्वत पर मिली, जिसे  देखकर वह उस पर मोहित हो गया और उससे विवाह कर लिया। विवाह के बाद कुंभकरण लंका लौट आया मगर कर्कटी पर्वत पर ही रही। कुछ समय बाद कर्कटी को एक पुत्र हुआ जिसका नाम भीम रखा गया। मान्यताओं के अनुसार जब श्रीराम ने कुंभकरण का वध कर दिया तो कर्कटी ने अपने पुत्र को देवताओं के चल से दूर रखने का फैसला किया। लेकिन बड़े होने पर जब भीम को अपने पिता की मृत्यु का कारण पता चला तो उसने देवताओं से बदला लेने का निश्चय कर लिया।

जिसके बाद भीम ने ब्रह्मा जी की तपस्या करके उनसे ताकतवर होने का वरदान प्राप्त किया। भगवान शिव के कामरुपेश्वर नामक राजा को एक दिन भीम शिवलिंग की पूजा करते हुए देख लिया। भीम ने राजा को महादेव की पूजा छोड़ उसकी पूजा करने के लिए कहा।
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परंतु राजा कने उसकी बात नहीं मानी जिस कारण भीम ने उन्हें बंदी अपना बना लिया। बंदी बनने के बाद भी राजा ने भोलेनाथ की पूजा करनी नहीं छोड़ी और कारगर में ही शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की आराधना करने लगा। भीम ने ये देखा तो उसने अपनी तलवार से राजा द्वारा बनाए शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास किया। किंतु ऐसा करने पर शिवलिंग से स्वयं भगवान शिव प्रकट हुए और भगवान शिव और भीम के बीच भयानक युद्ध हुआ। जिसमें भीम की मृत्यु हो गई। इसके बाद देवताओं ने भगवान शिव से हमेशा के लिए उसी स्थान पर रहने की प्रार्थना की। कहते हैं कि देवताओं के कहने पर भगवान शिव शिवलिंग के रूप में उसी स्थान पर स्थापित हो गए। लोक मान्यता है कि इस स्थान पर भीम से युद्ध करने की वजह से इस ज्योतिर्लिंग का नाम भीमशंकर पड़ गया।
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