भीष्‍म द्वादशी आज, जानें क्या है इस दिन का महत्व?

Edited By Jyoti,Updated: 24 Feb, 2021 01:57 PM

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प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी का व्रत पड़ता है, कुछ मान्यताओं के अनुसार इस दिन को गोविंद द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है।

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प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी का व्रत पड़ता है, कुछ मान्यताओं के अनुसार इस दिन को गोविंद द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। आज 24 फरवरी, दिन बुधवार को ये पर्व मनाया जा रहा है। प्रचलित किंवदंतियों हैं कि इस दिन भगवान विष्ण का पूजन किया जाता है। साथ ही साथ पावन नदियों में स्नान आदि कर दान करने की भी परंपरा है।

ज्योतिष शास्त्र में यूं तो संपूण माघ मास को अधिक शुभ व पुण्य प्राप्ति वाला माह माना जाता है, परंतु भीष्म द्वादशी का महात्मय अधिक है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन भगवान श्री हरि की पूजा करने से जातक को सभी पापों से मुक्ति मिलती है तथा वासुदेव जी की प्रीति प्राप्त होती है।

महाभारत में वर्णन किया गया है कि जो मनुष्य माघ मास में तपस्वियों को तिल दान करता है, वह कभी नरक का दर्शन नहीं करता। तो वहीं माघ मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान माधव की पूजा करने से मनुष्य को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। यही कारण है कि माघ मास के स्नान-दान की अपूर्व महिमा है।

शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि माघ मास की प्रत्येक तिथि पर्व मानी गई है। अगर असक्त स्थिति के कारण पूरे महीने का नियम न निभा सके तो कहा जाता है इसके बदल में 3 दिन या 1 दिन माघ स्नान के व्रत का पालन कर लेना चाहिए।

शास्त्रों में वर्णित श्लोक-
'मासपर्यन्तं स्नानासम्भवे तु त्र्यहमेकाहं वा स्नायात्‌।'

इस माह की भीष्‍म द्वादशी का व्रत भी अगर एकादशी की तरह ही पूर्ण पवित्रता के साथ चित्त को शांत रखते हुए पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से किया जाए तो यह व्रत मनुष्य के सभी कार्य सिद्ध करके उसे पापों से मुक्ति दिलाता है।

भीष्म द्वादशी की कथा
महाभारत के युद्ध में जब पांडवों को एहसास हुआ कि वहसभीष्म पितामह को हरा नहीं सकते, तब उन्होंने इस बात की भनक लगी कि भीष्म पितामह ने प्रण लिया था कि वह युद्ध में भी किसी भी स्त्री के समक्ष कभी भी शस्त्र नहीं उठाएंगे। तो उन्होंने एक चाल चली और शिखंडी को युद्ध के मैदान में भीष्म पितामह के समक्ष खड़ा कर दिया।

प्रतिज्ञा के अनुसार भीष्म पितामह ने अस्त्र-शस्त्र का उपयोग नहीं किया, जिसा अर्जुन फायदा उठाता है और उन पर बाणों की वर्षा कर देता है। जिसके बाद भीष्म पितामह बाणों की शैया पर लेट गए, हालांकि उन्होंने असंख्य बाण लगने के बावजूद भी प्राणों का त्याग नहीं किया। क्योंकि उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था।

अपने प्राण त्यागने के लिए उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने तक का इंतजार किया था। जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण पर पहुंचा तब अष्टमी तिथि के दिन भीष्म पितामह ने अपने प्राणों का त्याग किया, हालांकि उनके पूजन और अन्य कर्मकांड के लिए शास्त्रों में माघ मास की द्वादशी तिथि निश्चित की गई है।  

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