बिल्केश्वर शिव मंदिरः दर्शन करने से होता है पापों का नाश

Edited By Lata,Updated: 26 Jul, 2019 11:14 AM

bilkeshwara shiva temple

बिलावर की भूमि तपोभूमि भी कहलाती है। इसके साथ-साथ यहां प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर हैं, जो उत्तर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में जाने जाते हैं।

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बिलावर की भूमि तपोभूमि भी कहलाती है। इसके साथ-साथ यहां प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर हैं, जो उत्तर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में जाने जाते हैं। बिलावर का बिल्केश्वर शिव मंदिर प्रसिद्ध मंदिर है, जिसके दर्शन मात्र से ही इंसान कई जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है और उसके सारे संकट दूर हो जाते हैं, ऐसी लोगों की मान्यता है।

ऐसा ही एक मंदिर रामकोट तहसील के गांव गुड़ा कलाल में है, जिसे बनी महादेव के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण बिलावर के बिल्केश्वर मंदिर की तरह पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान करवाया था। इस मंदिर के प्रति लोगों में असीम श्रद्धा है। 
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आस्था का प्रतीक इस मंदिर की कहानी दंत कथाओं के अनुसार हजारों साल पहले इस मंदिर की जगह एक बहुत घना जंगल हुआ करता था। यहां बेल के पेड़ सबसे अधिक थे। इस कारण यहां का नाम बनी गुड़ा कलाल पड़ा। एक समय की बात है कि कुछ गद्दी समुदाय के लोग अपनी भेड़-बकरियों को चरा रहे थे तो उन्हें कुछ आवाजें सुनाई दीं। जब उन्होंने आवाजों की दिशा पर ध्यान दिया तो उन्हें वहां शिव मंदिर दिखाई दिया। उनके द्वारा सब लोगों को पता चला कि यहां पर एक मंदिर है। 
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इस मंदिर की मान्यता है कि इसके प्रांगण में एक 400 साल पुराना चम्पा का पेड़ है, जिसकी पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। जब लोगों की यह मन्नत पूरी होती थी तो कुछ लोग भूमि दान करते थे, इसलिए आज भी इस मंदिर के नाम 300 कनाल भूमि है। मंदिर के बाहर एक नंदी बैल और भैरव की मूर्ति है, जहां पर भी लोग मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर बकरे की बलि लगती है। इसके साथ ही गद्दी समुदाय के लोगों की दो समाधियां हैं। ये समाधियां गुरु-चेले की हैं, जो काफी भक्ति और शक्ति के मालिक थे। कुछ विद्वानों का कहना है कि सबसे पहले यहां शिवजी की एक विशाल मूर्ति हुआ करती थी। 
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एक बार सूंडला के राजा परिवार नई दुल्हन को लेकर शिव भोले नाथ के दर्शन करने आए। अचानक दुल्हन ने हंसते हुए कहा कि शिव शंकर भोलेनाथ जी आप यहां पर अकेले बैठे हैं। ऐसा बोलते ही भगवान शंकर ने उस दुल्हन को शिला बनाकर अपने साथ स्थापित कर लिया। उसके बाद राजा का परिवार ने इसे अपना कुलदेवता बना लिया और सारा परिवार यहां आने लगा। सबसे पहले महंत मोती गिरि गोस्वामी ने कई साल इस मंदिर की देख-रेख की। कहा जाता है कि उनके समय में इस मंदिर में एक बहुत बड़ा मेला लगाया जाता था, जिसमें सैंकड़ों लोग आते थे। उसके बाद सुखदेव गिरि और अब उनके वंशज मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। वैसे तो हर दिन श्रद्धालु यहां पर आते रहते हैं, किंतु सावन महीने में तो भक्तों का तांता लगा रहता है। लोग दूर-दूर से यहां दर्शन को आते हैं व माथा टेक कर अपनी मन्नत मांगते हैं। उनका कहना है कि यहां पर ऐसा लगता है कि साक्षात भगवान बैठे हैं। 

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