सावधान! माचिस की तिल्ली को गलत तरीके से बुझाना लगा सकता है जीवन में आग

Edited By ,Updated: 10 Jan, 2017 09:47 AM

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हिन्दू शास्त्रों के अनुसार अग्नि को देव स्वरूप माना जाता है। अत: उनकी पवित्रता को बनाए रखने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। अक्सर लोग माचिस की तिल्ली जलाने के बाद उसे फूंक मार कर बूझा देते हैं।

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार अग्नि को देव स्वरूप माना जाता है। अत: उनकी पवित्रता को बनाए रखने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। अक्सर लोग माचिस की तिल्ली जलाने के बाद उसे फूंक मार कर बूझा देते हैं। यहां तक की मोमबत्ती, दीया और अन्य ज्वलंत पदार्थों को भी मुंह या पैर से बुझा दिया जाता है। ऐसा करके अशुभता और अभाग्य को खुला निमंत्रण देते हैं आप। छोटी सी माचिस की तिल्ली को गलत तरीके से बुझाना आपके जीवन में आग लगा सकता है।


धूपदान, दीपदान करने के बाद माचिस की तीली को फूंक मारकर बुझाना उन्हें जूठा या अपवित्र करने के समान है। ऐसा करने से घर में दरिद्रता आती है और लक्ष्मी कभी ऐसे घर की ओर रूख नहीं करती। शास्त्रों के अनुसार इसे अपराध माना गया है। प्रकृति पांच तत्वों से बनी है (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) सनातन धर्म के अनुसार इन सभी को देव तुल्य मान पूजन किया जाता है। जिन्हें देव मानकर पूजा जाता है उनको फूंक मार कर अपमान करना भला कहां तक उचित है।
 

अग्नि के तेज से सभी कुछ पवित्र होता है। माना जाता है कि देवताअों को समर्पित वस्तुएं अग्नि में डालने से उन तक पहुंच जाती है। कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जाता जब तक कि इसका ग्रहण देवता न कर लें। किंतु देवता ऐसा ग्रहण तभी कर सकते हैं जब अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए। अग्नि को देवताओं का मुख कहा गया है।


ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि वैदिक ग्रंथों में अग्नि की महत्ता पर कई सूक्तों की रचनाएं हुई हैं। देवताअों को भोग लगाने के पश्चात ही यज्ञ को पूर्ण माना जाता है। भोग में मीठा होना जरुरी होता है तभी देवता संतुष्ट होते हैं। 
               

दक्षिण-पूर्व दिशा के स्वामी शुक्र और देवता अग्नि हैं। व्यवसाय में तरक्की, नौकरी में मनचाही सफलता और वास्तुदोष से राहत पाने के लिए शुक्र अथवा अग्नि के मंत्र का जप करें। 


शुक्र मंत्र- ऊँ शुं शुक्राय नमः

अग्नि देव मंत्र- ऊँ अग्नेय नमः

अर्थात- शब्द ॐ का अर्थ है जो ओंकार का नामांतर प्रणव है। यह ईश्वर का वाचक है। शब्द अग्नये का अर्थ है अग्नि, जो देव हैं। शब्द स्वाहा का अर्थ है आग में भेंट जो की एक अभूतपूर्व पौष्टिक और स्फूर्तिदायक प्रभाव के लिए पूरे जीवन और सृजन पर निर्धारित है।

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