Buddha Purnima 2021: सही समय पर एक और बुद्ध अवतरित होंगे !

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 May, 2021 06:43 AM

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आनंद मैं थक गया  हूं...!  इन दो साल्व वृक्षों के बीच उत्तर की ओर सिरहाना कर बिछौना बिछाओ। जरा आराम करूंगा।’’ ये अंतिम शब्द थे तथागत भगवान बुद्ध के, जो उन्होंने अपने परम शिष्य आनंद से निर्वाण प्राप्ति से पहले कुशीनगर में कहे थे।

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Lord Buddha's 2583rd birth anniversary: आनंद मैं थक गया  हूं...!  इन दो साल्व वृक्षों के बीच उत्तर की ओर सिरहाना कर बिछौना बिछाओ। जरा आराम करूंगा।’’

ये अंतिम शब्द थे तथागत भगवान बुद्ध के, जो उन्होंने अपने परम शिष्य आनंद से निर्वाण प्राप्ति से पहले कुशीनगर में कहे थे। किसी जमाने में 16 महा जनपदों में से एक रहा कुशीनगर वर्तमान में पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक जनपद है, जो बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। पुरातात्विक महत्व के इस स्थल का संबंध तथागत भगवान बुद्ध के जीवन से संबंधित तीन (जन्म, ज्ञान और मृत्यु) महत्वपर्ण घटनाओं में से एक के साथ है। यहां तथागत ने निर्वाण प्राप्त किया था।

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रामायण से भी कुशीनगर का संबंध
आम तौर पर बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक कुशीनगर को भगवान बुद्ध के निर्वाण स्थल के रूप में जाना जाता है परंतु, कुशीनगर का संबंध भगवान श्री राम और उनके पुत्र कुश से भी है। कुशीनगर का उल्लेख भगवान वाल्मीकि ने रामायण में भी किया है। रामायण के अनुसार त्रेतायुग में यह नगर भगवान श्री राम के पुत्र कुश की राजधानी था, जिसके चलते इसे कुशावती के नाम से जाना जाता था।

वहीं, पालि साहित्य के ग्रंथ ‘त्रिपिटक’ के अनुसार बुद्ध काल में यह 16 महा जनपदों में से एक मल्ल राजाओं की राजधानी कुशीनारा के नाम से जाना जाता था।  इतिहासकारों के अनुसार ईसापूर्व पांचवीं शताब्दी के अंत में भगवान बुद्ध कुशीनगर आए थे। कुशीनगर में ही वह स्थान है जहां उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्ष में अपना अंतिम अपदेश दिया था और मल्लों की इसी राजधानी में दो साल्व वृक्षों के नीचे वह निर्वाण को प्राप्त हुए थे।

विभिन्न नगरों और बौद्ध विहारों को अपने प्रकाश पुंज से आलोकित करते हुए तथागत भगवान बुद्ध 80 वर्ष की अवस्था में कुशीनगर पहुंचे थे। बौद्ध धर्मावलंबियों में वैशाख पूर्णिमा का खासा महत्व है क्योंकि इसी दिन सिद्धार्थ गौतम का जन्म, ज्ञान और निर्वाण हुआ था। इसी वैशाख माह में भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ विहार करते हुए कुशीनगर पहुंचे थे।  

बौद्ध साहित्य के अनुसार कुशीनगर के एक लोहार ‘चुंद’ ने अपने यहां भगवान बुद्ध को भोजन के लिए आमंत्रित किया। चुंद के यहां भोजन करने के बाद भगवान बुद्ध अस्वस्थ हो गए। उन्हें मरणांतक पीड़ा होने लगी। अंतत: उन्होंने कुशीनगर में ही वैशाख पूर्णिमा के दिन निर्वाण प्राप्त किया। लेकिन, इससे पहले उन्होंने अपने शिष्यों को जो उपदेश दिया वह आज भी अनुकरणीय है।

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तुम अपना दीप आप बनो

‘‘आनंद,  मेरी जीवन यात्रा समाप्त होने को है।  अब मैं बूढ़ा हो गया हूं।  मेरी उम्र हो गई है। अत: हे आनंद तुम अपना दीप खुद बनो। आत्मनिर्भर बनो। आनंद, मैंने तुम्हें पहले ही बतलाया  है कि हमें अपनी प्रिय वस्तुओं से अलग होना ही है। फिर मेरा रहना किस तरह संभव है।’’  

आनंद के नेत्रों से निरंतर अश्रुधारा बह रही थी। तथागत ने फिर कहा, ‘‘जन्म लेने वाली, अस्तित्वमान प्रत्येक वस्तु से नाश होना जुड़ा रहता है। अलग होना इसका स्वभाव है, फिर भला मैं अकेला ही इसका अपवाद कैसे हो सकता हूं। अत: शोक नहीं करते। बस आनंद, रोओ मत, शोक मत करो। जिसका धर्म ही पृथक होना है, भला यह किस तरह संभव है कि वह अलग न हो।’’  

आनंद ने कहा, ‘‘आपके जाने के बाद हमें कौन शिक्षा देगा?’’

बुद्ध ने कहा,‘‘मैं इस धरती पर पहला और अंतिम बुद्ध नहीं हूं।  सही समय पर एक और बुद्ध अवतरित होंगे। वह तुम्हें धर्मोपदेश देंगे।’’

बुद्ध के निर्वाण की सूचना मिलते ही कुशीनगर के मल्ल, बौद्ध भिक्षु व नगर के लोग आने लगे, वैशाख पूर्णिमा का अंतिम प्रहर यानी निर्वाण का समय नजदीक आ रहा था।  

जीवन के अंतिम समय में बुद्ध ने कहा, ‘‘भिक्षुओ, मैं तुमसे कहता हूं कि समस्त संयोगजन्य वस्तुएं क्षयशील हैं। अत: प्रत्येक को सावधान चित्त से अपना-अपना कर्तव्य करते रहना चाहिए।

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