Chaitra Navratri 2021: कौन हैं देवी गायत्री, जानिए इनसे जुड़ी खास जानकारी

Edited By Jyoti,Updated: 17 Apr, 2021 01:24 PM

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चैत्र नवरात्रों में देवी दुर्गा के तो प्रत्येक रूप की पूजा होती ही है साथ ही साथ इनके अन्य स्वरूपों की भी पूजा करनी अति लाभदायक मानी जाती है

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चैत्र नवरात्रों में देवी दुर्गा के तो प्रत्येक रूप की पूजा होती ही है साथ ही साथ इनके अन्य स्वरूपों की भी पूजा करनी अति लाभदायक मानी जाती है। क्योंकि नवरात्रों का पर्व शक्ति के पूजन के लिए खास होता है। ऐसे में सनातन धर्म में बताई गई तमाम देवियों का पूजन करना अत्यंक लाभकारी माना जाता है। इसीलिए आज नवरात्रि के इस शुभ अवसर आपको बताने जा रहे हैं देवी गायत्री से जुड़े कुछ तथ्य बताने जा रहे हैं। बताया जाता है देवी गायत्री के बारे में सनातन धर्म के ग्रंथों में कई कथाएं वर्णित है। जिनसे उनके स्वरूप के बारे में जाना जा सकता है। मगर पुराणों आदि में इनसे संबंधिक कुछ कथाएं ऐसी हैं कि जिनसे इनके बारे में ये ज्ञात होता है कि एक गायत्री तो वो थीं जो स्थूल रूप में एक देवी हैं और दूसरी वो जो चैतन्य रूप में इस ब्रह्मांड की आद्यशक्ति कहलाती हैं। इसके अलावा भी धार्मिक ग्रंथों में इनके बारे में बहुत कुछ बताया गया है, आइए जानते हैं इनसे जुड़ी अन्य रोचक व विशेष बातें- 

माता गायत्री के बारे में पुराणों में अलंकारिक कथाओं का वर्णन मिलता है। लेकिन कई कथाओं को पढ़ने के बाद यह समझ में आता है कि एक गायत्री तो वो थीं जो स्थूल रूप में एक देवी हैं और दूसरी वो जो चैतन्य रूप में इस ब्रह्मांड की आद्यशक्ति हैं। आओ जानते हैं उनके बारे में 7 रोचक जानकारी।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माता गायत्री को वेदमाता कहा जाता हैै, क्योंकि इनके हाथों में चारों वेद सुशोभित हैं जिनकी सुरक्षा का भार देवी गायत्री संभालती हैं। इसके अलावा इनके दूसरे हाथ में कमंडल सुशोभित होता है तथा ये हंसों की सवारी करती है। 
 
मान्यताएं प्रचलित हैं कि इन्हीं के नाम पर गायत्री मंत्र तथा गायत्री छंद की रचना हुई है, अर्थाता दोनों की अधिष्ठात्री देवी यहीं हैं। 

प्रचलित कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी कुल 5 पत्नियां थीं- सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती। बता दें इसमें सावित्री और सरस्वती का उल्लेख अधिकतर जगहों पर मिलता है जो उनकी पत्नियां थीं लेकिन बाकि पत्नियों का उल्लेख स्पष्ट नहीं है।

इसके अलावा एक मान्यता ये भी है कि पुष्कर में यज्ञ के दौरान सावित्री के अनुपस्थित होने की स्थित में ब्रह्मा ने वेदों की ज्ञाता विद्वान स्त्री गायत्री से विवाह कर यज्ञ संपन्न किया था। यह गायत्री संभवत: उनकी पुत्री नहीं थी। 

जिस पर सावित्री ने रुष्ट होकर ब्रह्मा को जगत में नहीं पूजे जाने का शाप दे दिया था। हालांकि इसके बारे में भी पुराणों में स्पष्ट नहीं है। परंतु वर्तमान समय में देश में ब्रह्मा जी का केवल एकमात्र मंदिर स्थित है। देश में अधिकतर लोग इनकी पूजा नहीं करते। 

सनातन धर्म में गायत्री माता को आद्याशक्ति प्रकृति के पांच स्वरूपों में से एक माना जाता है। कहते हैं कि प्राचीन समय में यह सविता की पुत्री के रूप में जन्मी थीं, जिस कारण इनका पहले नाम सावित्री था। इसीलिए कहीं-कहीं इनके सावित्री और गायत्री के पृथक्-पृथक् स्वरूपों का भी वर्णन मिलता है। ऐसा शास्त्रों में वर्णन किया गया है कि चूंकि भगवान सूर्य ने इन्हें ब्रह्माजी को समर्पित कर दिया था, इस कारण इनका एक नाम ब्रह्माणी भी पड़ा था। 


इनके जन्म से जुड़ी अन्य मान्यताओं के अनुसार भगवान की नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ। इस कमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए तथा ब्रह्मजी से सावित्री हुई। इसके बाद इन दोनों केे संयोग से चारों वेद उत्पन्न हुए। 

इन वेदों से विश्व में समस्त प्रकार का ज्ञान उत्पन्न हआ। जिसके उपरांत ब्रह्मा जी ने पंच भौतिक सृष्टि की रचना की। उन्होंने दो तरह की सृष्टि उत्पन्न की एक चैतन्य और दूसरी जड़। 

ब्रह्मा जी की दो भुजाएं हैं इन्हें संकल्प और परमाणु शक्ति के नाम से जाना जाता है। संकल्प शक्ति चेतन सत् सम्भव होने से ब्रह्मा की पुत्री हैं और परमाणु शक्ति स्थूल क्रियाशील एवं तम सम्भव होने से ब्रह्मा की पत्नी हैं। जिसके चलते गायत्री और सावित्री ब्रह्मा की पुत्री और पत्नी नाम से जग में प्रसिद्ध हुई थी। 

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