Chaitra Navratri 2021: उज्जैन के हरसिद्धि मंदिर में गिरी थी देवी सती की कोहनी

Edited By Jyoti,Updated: 16 Apr, 2021 02:59 PM

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देशभर में नवरात्रि पर्व बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। इस दौरान लोग अपने घरों के साथ-साथ देश में स्थित देवी के विभिन्न शक्तिपीठों के दर्शन करने जाते हैं।

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देशभर में नवरात्रि पर्व बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। इस दौरान लोग अपने घरों के साथ-साथ देश में स्थित देवी के विभिन्न शक्तिपीठों के दर्शन करने जाते हैं। ताकि उन पर देवी मां की खूब कृपा बरस सके। परंतु पिछले साल की तरह इस साल भी कोरोना के कहर के चलते बहुत से लोग घर में रहकर ही पूजा अर्चना कर रहे हैं, जो सही भी हैै। मगर ऐसे में कई लोगों को मां के विभिन्न शक्तिपीठों के दर्शन करने की इच्छा अधूरी रही गई है। तो आपको बता दें उन लोगों के पास एक सुनहरा मौका है मां के एक शक्तिपीठ के दर्शन करने का जो उज्जैन में स्थित है। जी हां, अपनी वेबसाइट के जरिए आज हम आपको देवी के ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके शक्तिपीठों में की जाती है।

दरअसल हम बात कर रहे हैं हरसिद्धि देवी के मंदिर की। यूं तो देश में हरसिद्धि देवी के अनेकों प्रसिद्ध मंदिर हैं, परंतु वाराणासी व उज्जैन स्थित हरसिद्धि मंदिर सबसे प्राचीन माना जाता है। मंदिर के इतिहास की बात करेें तो उज्जैन के महाकाल क्षेत्र में स्थित ये प्रसिद्ध मंदिर अति प्राचीन है। कहा जाता है मंदिर स्थल प्राचीन समय में राजा विक्रमादित्य की तपोभूमि हुआ करती थी। लोक मान्यताओं के अनुसार मंदिर के पीछे एक कोने में कुछ 'सिर' सिंदूर चढ़े हुए रखें हैं, जो विक्रमादित्य के सिर बतलाए जाते है।

ऐसी कथाएं प्रचलित हैं सम्राट विक्रम देवी माता को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक 12 साल में एक बार अपने हाथों से अपने मस्तक की बलि देते थे। ऐसा उन्होंने कुल 11 बार किया, परंतु हर बार उनका सिर वापस लौट आता था। परंतु जब 12वी बार उनका सिर नहीं लौट तो वे समझ गए कि उनसा शासन के समापन का समय आ गया है। कहा जाता है यहां विराजमान हरसिद्धि देवी वैसे वैष्णववी देवी हैं, इसलिए इनकी पूजा में किसी प्रकार की बलि नहीं चढ़ाई जाती है। ये देवी सम्राट विक्रमादित्य के साथ-साथ परमारवंशीय राजाओं की भी कुलदेवी कहलाती हैं। 

यहां के प्रचलित मान्यताओं के अनुसार उज्जैन की रक्षा के लिए आस-पास देवियों का पहरा है, जिनमें से एक है हरसिद्धि देवी। तो वहीं धार्मिक किंवदंतियों के अनुसार इस स्थान पर देवी सती के शरीर का अंश अर्थात हाथ की कोहनी गिरी थी। जिस कारण इस स्थल को शक्तिपीठ के अंतर्गत माना जाता है। पुराणों में इस देवी स्थल का वर्णन पढ़ने को मिलता है। 

यहां जानें मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा- 
कथाओं के अनुसार चंड और मुंड नामक दो दैत्यों ने अपना आतंक मचा रखा था। एक बार दोनों ने कैलाश पर कब्जा करने की योजना बनाई और दोनों कैलाश पर पहुंच गए। उस दौरान माता पार्वती और भगवान शंकर द्यूत-क्रीड़ा में निरत थे। दोनों जबरन अंदर प्रवेश करने लगे, तो द्वार पर ही शिव के नंदीगण ने उन्हें रोका दिया। दोनों दैत्यों ने नंदीगण को शस्त्र से घायल कर दिया। जब भगवान शंकर को यह पता चला तो उन्होंने तुरंत चंडीदेवी का स्मरण किया। देवी ने आज्ञा पाकर तत्क्षण दोनों दैत्यों का वध कर दिया। फिर उन्होंने शंकर जी के निकट आकर विनम्रता से वध का वृतांत सुनाया। शंकरमजी ने प्रसन्नता से कहा- हे चण्डी, आपने दुष्टों का वध किया है अत: लोक-ख्याति में आपना नाम हरसिद्धि नाम से प्रसिद्ध होगा। कहा जाता है तभी से इस महाकाल-वन में हरसिद्धि देवी विराजित हैं।
 

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