Chaitra Navratri 2020: मां कात्यायनी से पाएं love marriage का वरदान

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Mar, 2020 07:20 AM

chaitra navratri maa katyayani

शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के छठे दिन माता दुर्गा के छठे रूप में ‘कात्यायनी देवी’ की पूजा की जाती है। कात्यायनी देवी ने देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए और भगवती ऋषि की भावना की

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Chaitra Navratri 2020: शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के छठे दिन माता दुर्गा के छठे रूप में ‘कात्यायनी देवी’ की पूजा की जाती है। कात्यायनी देवी ने देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए और भगवती ऋषि की भावना की पूर्णता के लिए यह देवी महर्षि कात्यायन के आश्रम पर प्रकट हुई और महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या माना। इसलिए उस देवी की ‘कात्यायनी’ के नाम से प्रसिद्धि हुई। इससे इनका नाम ‘कात्यायनी’ पड़ा।

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मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान् कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। यह ब्रजमण्डल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यन्त ही भव्य और दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएं हैं। माता जी का दाहिनी ओर का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है और नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है। 

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जिनके विवाह में विलंब हो रहा है, जो लड़कियां प्रेम विवाह को अरेंज मैरिज में बदलना चाहती हैं या मनचाहा वर पाने के लिए आज नवरात्र की षष्ठी तिथि पर मां कात्यायनी की पूजा करें। विद्वान कहते हैं जो सच्चे ह्रदय से विधि-विधान एवं श्रद्धापूर्वक मां कात्यायनी की उपासना करता है। अगले चैत्र नवरात्र वे अपने जीवनसाथी के साथ पूजा करता है। 

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इसके अतिरिक्त मां को 16 श्रृंगार का सामान भेंट करने के बाद किसी ब्राह्मण महिला को भेंट स्वरुप दे दें।

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मां कात्यायनी के मंत्रों का जाप करें
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

ॐ कात्यायिनी देव्ये नमः

कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी. नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः

चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना. कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि

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मां कात्यायनी की आरती
जय कात्यायनि मां, मैया जय कात्यायनि मां
उपमा रहित भवानी, दूं किसकी उपमा ॥
मैया जय कात्यायनि, गिरजापति शिव का तप, असुर रम्भ कीन्हां
वर-फल जन्म रम्भ गृह, महिषासुर लीन्हां ॥
मैया जय कात्यायनि, कर शशांक-शेखर तप, महिषासुर भारी
शासन कियो सुरन पर, बन अत्याचारी ॥
मैया जय कात्यायनि, त्रिनयन ब्रह्म शचीपति, पहुंचे, अच्युत गृह
महिषासुर बध हेतू, सुर कीन्हौं आग्रह ॥
मैया जय कात्यायनि, सुन पुकार देवन मुख, तेज हुआ मुखरित
जन्म लियो कात्यायनि, सुर-नर-मुनि के हित ॥
मैया जय कात्यायनि, अश्विन कृष्ण-चौथ पर, प्रकटी भवभामिनि
पूजे ऋषि कात्यायन, नाम का त्यायिनि ॥
मैया जय कात्यायनि, अश्विन शुक्ल-दशी को, महिषासुर मारा 

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