चैत्र नवरात्रि 2019: यहां जानें, नवरात्रि के पहले दिन क्यों होती है मां शैलपुत्री की पूजा

Edited By Jyoti,Updated: 06 Apr, 2019 11:04 AM

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आज से यानि 6 अप्रैल दिन शनिवार से इस वर्ष के चैत्र नवरात्रि आरंभ हो गए हैं। इस दिन से शुरू होकर लगातार 9 दिन तक नवदुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। जिनमें से आज के दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है। तो आइए जानें मां शैलपुत्री की कथा-

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आज से यानि 6 अप्रैल दिन शनिवार से इस वर्ष के चैत्र नवरात्रि आरंभ हो गए हैं। इस दिन से शुरू होकर लगातार 9 दिन तक नवदुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। जिनमें से आज के दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है। तो आइए जानें मां शैलपुत्री की कथा-

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वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ॥ 
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

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प्राचीन समय की बात है कि राजा प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया। किन्तु उन्होंने भगवान शंकर जी को इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।

अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकर जी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।
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शंकर जी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी।

सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा है। सारे लोग मुंह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।

परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत ठेस पहुंची। उन्होंने यह भी देखा कि वहां चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का मन क्षोभ और क्रोध से भर उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।
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वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस  दु:खद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णत: विध्वंस करा दिया।

सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुर्ईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था।
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