Edited By Jyoti,Updated: 12 Apr, 2019 03:50 PM
नवरात्रि में मां के विभिन्न प्रकार के मंत्रों का जाप किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में इनके भिन्न-भिन्न रूपों के अलग-अलग मंत्र दिए गए हैं। ठहरिए ठहरिए कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे कि हम आपको देवी के मंत्र के बारे में बताने जा रहे हैं।
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नवरात्रि में मां के विभिन्न प्रकार के मंत्रों का जाप किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में इनके भिन्न-भिन्न रूपों के अलग-अलग मंत्र दिए गए हैं। ठहरिए ठहरिए कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे कि हम आपको देवी के मंत्र के बारे में बताने जा रहे हैं। जी नहीं, आज हम आपको इनका कोई मंत्र नहीं बल्कि देवी दुर्गा की एक ऐसी स्तुति के बारे में बताने जा रहे हैं जिसको-पढ़ने सुनने से आपके सभी कष्ट तो दूर होंगे ही बल्कि आपको जीवन में हर काम में सफलता मिलने लगेगी। तो चलिए आपके इंतज़ार को खत्म करते हुए आपको बताते हैं माता दुर्गा की उस स्तुति के बारे में जो आपकी हर तरह की मनोरथ को आसानी से पूरा कर सकती हैं।
श्री दुर्गा चालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी,
नमो नमो अम्बे दुख हरनी ।
निराकार है ज्योति तुम्हारी,
तिहूं लोक फैली उजियारी ।।
शशि ललाट मुख महा विशाला,
नेत्र लाल भृकुटी विकराला ।
रूप मातु को अधिक सुहावै,
दरश करत जन अति सुख पावै ।।
तुम संसार शक्ति मय कीना,
पालन हेतु अन्न धन दीना ।
हुई जग पाला, तुम ही आदि सुन्दरी बाला ।।
प्रलयकाल सब नाशन हारी,
तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावैं,
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावै ।।
रूप सरस्वती को तुम धारा,
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ।
धरा रूप नरसिंह को अम्बा,
परगट भई फाड़कर खम्बा ।।
रक्षा करि प्रहलाद बचायो,
हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं,
श्री नारायण अंग समाहीं ।।
क्षीरसिंधु में करत विलासा,
दयासिंधु दीजै मन आसा ।
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी,
महिमा अमित न जात बखानी ।।
मातंगी धूमावति माता,
भुवनेश्वरि बगला सुख दाता ।
श्री भैरव तारा जग तारिणी,
क्षिन्न भाल भव दुख निवारिणी ।।
केहरि वाहन सोह भवानी,
लांगुर वीर चलत अगवानी ।
कर में खप्पर खड्ग विराजै,
जाको देख काल डर भाजै ।।
सोहे अस्त्र और त्रिशूला,
जाते उठत शत्रु हिय शूला ।
नाग कोटि में तुम्हीं विराजत,
तिहुं लोक में डंका बाजत ।।
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे,
रक्तबीज शंखन संहारे।
महिषासुर नृप अति अभिमानी,
जेहि अधिभार मही अकुलानी ।।
रूप कराल काली को धारा,
सेना सहित तुम तिहि संहारा ।
परी गाढ़ संतन पर जब-जब,
भई सहाय मात तुम तब-तब ।।
अमरपुरी औरों सब लोका,
तव महिमा सब रहे अशोका ।
बाला में है ज्योति तुम्हारी,
तुम्हें सदा पूजें नर नारी ।।
प्रेम भक्ति से जो जस गावैं,
दुख दारिद्र निकट नहिं आवै ।
ध्यावें जो नर मन लाई,
जन्म मरण ताको छुटि जाई ।।
जागी सुर मुनि कहत पुकारी,
योग नहीं बिन शक्ति तुम्हारी ।
शंकर अचारज तप कीनो,
काम अरु क्रोध सब लीनो ।।
निशदिन ध्यान धरो शंकर को,
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ।
शक्ति रूप को मरम न पायो,
शक्ति गई तब मन पछितायो ।।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी,
जय जय जय जगदम्ब भवानी ।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा,
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ।।
मोको मातु कष्ट अति घेरो,
तुम बिन कौन हरे दुख मेरो ।
आशा तृष्णा निपट सतावै,
रिपु मूरख मोहि अति डरपावै ।।
शत्रु नाश कीजै महारानी,
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ।
करो कृपा हे मातु दयाला,
ऋद्धि सिद्धि दे करहुं निहाला ।।
जब लगि जियौं दया फल पाउं,
तुम्हरो जस मैं सदा सुनाऊं ।
दुर्गा चालीसा जो गावै,
सब सुख भोग परम पद पावै ।।
देवीदास शरण निज जानी,
करहुं कृपा जगदम्ब भवानी ।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी,
नमो नमो अम्बे दुख हरनी ।।
दोहा-
शरणागत रक्षा करे, भक्त रहे निशंक ।।
मैं आया तेरी शरण में, मातु लीजिए अंक ।।