Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Jun, 2018 07:12 PM
पौराणिक मतानुसार जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की बारहवीं तिथि को चंपक द्वादशी कहते हैं। शास्त्रों में इस दिन भगवान गोविंद विट्ठलनाथ जी अर्थात भगवान श्रीकृष्ण का चंपा के फूलों से पूजन व श्रृंगार करने का विधान बताया गया है। शास्त्रों ने इस पर्व को राघव...
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पौराणिक मतानुसार जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की बारहवीं तिथि को चंपक द्वादशी कहते हैं। शास्त्रों में इस दिन भगवान गोविंद विट्ठलनाथ जी अर्थात भगवान श्रीकृष्ण का चंपा के फूलों से पूजन व श्रृंगार करने का विधान बताया गया है। शास्त्रों ने इस पर्व को राघव द्वादशी या रामलक्ष्मण द्वादशी के नाम से भी संबोधित किया गया है। इस दिन विष्णु के अवतार श्रीराम तथा शेषनाग के अवतार श्री लक्ष्मण की मूर्तियों का विधिवत पूजन करने का विधान है।
ऐसी मान्यता है कि चंपक द्वादशी के दिन चंपा के फूलों से विधिवत भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है तथा उसे विष्णु लोक में जगह मिलती है तथा चंपक द्वादशी पर किए गए विधिवत पूजन से व्यक्ति के सकल कार्य सिद्ध होते हैं तथा जो कार्य लंबे समय से लंबित पड़ें हैं वो जल्द ही संपूर्ण होकर सिद्ध भी होते हैं।
भगवान विट्ठलेश श्रीकृष्ण का विधिवत पूजन कर उन पर चंपा के फूलों की माला चढ़ाएं अगर चंपा के फूल संभव न हों तो पीले-सफ़ेद फूलों की माला चढ़ाएं। यह उपाय मध्यान के समय करें। पूजा संपूर्ण होने के बाद हल्दी अथवा पीत चंदन की माला से इस मंत्र का जाप करें। जल्द ही सकल कार्य सिद्ध होंगे।
मंत्र: वंदे नवघनश्यामम् पीत कौशेयवाससम्। सानंदम् सुंदरम् शुद्धम् श्रीकृष्णम् प्रकृतेः परम्॥
नोट: मंत्र देवऋषि नारद द्वारा रचित पञ्चरात्रे कृष्ण स्तोत्र से है।
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com
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