Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Jan, 2018 03:55 PM
जैसे कि बहुत ले लोगो को पता होगी कि आचार्य चाण्क्य अपने समय के बहुत बड़े नीतिवान थे। उनकी नीतियां न केवल उस समय में बल्कि आज के समय में भी व्यक्ति के जीवन को बहुत हद तक प्रभावित करती है।
जैसे कि बहुत ले लोगो को पता होगी कि आचार्य चाण्क्य अपने समय के बहुत बड़े नीतिवान थे। उनकी नीतियां न केवल उस समय में बल्कि आज के समय में भी व्यक्ति के जीवन को बहुत हद तक प्रभावित करती है। इनकी नीतियां मानव जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी मानी गई है। आचार्य ने अपनी नीतियां द्वारा घर-परिवार, समाज आदि में कैसा व्यवहार होना चाहिए इसके बारे में विस्तार से बताया है। जानतें है कि उनकी एक नीति के बारे में जिसमें उन्होंने व्यक्ति के स्वभाव के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताई हैं। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-
यत्रोदकस्तत्र वसन्ति हंसा
स्तथैव शुष्कं परिवर्जयन्ति।
न हंसतुल्येन नरेण भाव्यं
पुनस्त्यजन्त: पुनराश्रयन्त:।।
जिस स्थान पर जल रहता है हंस वही रहते हैं। हंस उस स्थान को तुरंत ही छोड़ देते हैं जहां पानी नहीं होता है। हमें हंसों के समान स्वभाव वाला नहीं होना चाहिए। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमें कभी भी अपने मित्रों और रिश्तेदारों का साथ नहीं छोडना चाहिए। जिस प्रकार हंस सूखे तालाब को तुरंत छोड़ देते हैं, इंसान का स्वभाव वैसा नहीं होना चाहिए। यदि तालाब में पानी न हो तो हंस उस स्थान को भी तुरंत छोड़ देतें हैं जहां वे वर्षों से रह रहें होते हैं। बारिश के बाद तालाब में जल भरने के बाद हंस वापस उस स्थान पर आ जाते हैं। हमें इस प्रकार का स्वभाव नहीं रखना चाहिए। हमारे मित्रों और रिश्तेदारों का सुख-दुख हर परिस्थिति में साथ नहीं छोडना चाहिए। एक बार जिससे संबंध बनाया जाए उससे हमेशा निभाना चाहिए। हंस के समान स्वार्थी स्वभाव नहीं होना चाहिए।