चाणक्य नीति: धर्म की जन्मभूमि कहलाती है "दया"

Edited By Jyoti,Updated: 08 Mar, 2020 07:01 PM

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चाणक्य की नीतियों से कोई वाकिफ़ न हो, ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति होगा। इन्होंने समाज में अपने ज्ञान के दम पर एक ऐसा रूतबा हासिल किया जिसके पाने का चाहवान हर कोई होगा।

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चाणक्य की नीतियों से कोई वाकिफ़ न हो, ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति होगा। इन्होंने समाज में अपने ज्ञान के दम पर एक ऐसा रूतबा हासिल किया जिसके पाने का चाहवान हर कोई होगा। यहीं कारण है कि आज के समय भी न केवल पुराने ज़माने की पीढ़ी बल्कि आज का युवा भी इन नीतियों को अपनाने में विश्वास रखता है और इनको अपनाता भी है। अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको आए दिन आचार्य चाणक्य के नीतिशास्त्र में वर्णित नीतियों के बारे में जानकारी देते रहते हैं। इसी कड़ी को बरकरार रखते हुए आज भी हम आपको इनके नीतिशास्त्र में दिए गए एक श्लोक का उल्लेख करने आएं हैं, जिसें हम आपको बताएंगे कि कब इंसान के मन में संस्कार पैदा होते हैं। 
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आचार्य चाण्क्य कहते हैं: 
श्लोक-

दया धर्मस्य जन्मभूमि:।
भावार्थ : मन में दया अथवा परजन हिताय की भावना के उदय होते ही अच्छे संस्कारों का भी जन्म हो जाता है इसलिए दया को धर्म की जन्म भूमि कहा गया है।  

इसके अलावा यहां जानें महानपुरुषों के कुछ अनमोल वचन- 
लखनऊ में कुकरैल नदी है जिसे कर्म नासा नदी भी कहते हैं। इस नदी का पानी पक्षी भी नहीं पीते। शिव महापुराण में लिखा हुआ है। यह ब्रह्मा के रक्त से निकली है। वट वृक्ष ब्रह्मा का स्वरूप है। वट वृक्ष के पत्ते पर रेत का शिवलिंग बना कर उस पर दही चढ़ाएं। वट वृक्ष के पास पूजा फल देने वाली है। 
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परिवारों में आधे झगड़े तो झूठ बोलने से होते हैं। हम अपने ही कारणों  से परेशान होते हैं। मगर हम कहते हैं कि ईश्वर ने हमें परेशान कर दिया है। कोई किसी को परेशान नहीं करता। बड़े-छोटे सब मिल कर भोजन करो एवं दूसरे का आदर सत्कार करने लग जाओ। खुशियों की बरसात होने लगेगी।

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