चाणक्य नीति: उच्च लोगों से हमेशा रखने चाहिए अच्छे संबंध नहीं तो...

Edited By Jyoti,Updated: 17 Oct, 2021 12:05 PM

chanakya niti gyan in hindi

चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य ने मानव जीवन के लगभग प्रत्येक सूत्र के बारे में बताया है। कहा जाता है जो व्यक्ति अपने जीवन में सफलता पाने की इच्छा रखता हो, अगर वो इनके द्वारा नीतियों को

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चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य ने मानव जीवन के लगभग प्रत्येक सूत्र के बारे में बताया है। कहा जाता है जो व्यक्ति अपने जीवन में सफलता पाने की इच्छा रखता हो, अगर वो इनके द्वारा नीतियों को अपने जीवन में अपनाता है तो सफल जरूर होता है। बताया जाता है प्राचीन समय में आचार्य चाणक्य की नीतियों का प्रयोग उस समय के राजाओं आदि द्वारा किया जाता था। बल्कि प्रचलित धार्मिक कथाओं के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने बल के साथ-साथ इनकी नीतियों के दम पर ही राज्य पाया था। तो आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य की कुछ खास नीतियां जिनके छोटे-छोटे श्लोकों के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने मानव को बहुत बड़ी बातें समझाने का प्रयास किया है। 

चाणक्य नीति श्लोक-
कुटु बिनो भेतव्यम्।
भाव- उच्च लोगों से रखो अच्छे संबंध
अर्थ- राजा अथवा उसके किसी कर्मचारी से द्वेष रखने से नुक्सान ही होता है। राज्य में राजा अथवा उच्च व्यक्तियों की ही चलती है। अत: ऐसे लोगों से सदैव अच्छे संबंध ही बनाने चाहिए। जो व्यक्ति इस चाणक्य नीति को अपने जीवन में अपनाता है उसे अधिक लाभ होता है।

चाणक्य नीति श्लोक-
साधुजनबहुलो देश:।
भाव- जहां ‘सज्जन’ रहते हों, वहीं बसें
अर्थ- जिस देश में भले और पवित्र लोग रहते हों, वहीं बसना चाहिए। चाणक्य नीति सूत्र शास्त्र के अलावा कई अन्य धार्मिक शास्त्रों में वर्णन है कि यदि व्यक्ति किसी ऐसे स्थान पर रहता है जहां अच्छे लोग न हो यानि अच्छी संगति न हो तो उसका खुद का व्यक्तित्व धीरे-धीरे वैसा होने लगता है। इसलिए कहा जाता है कि व्यक्ति को हमेशा उस जगह रहना चाहिए जहां अच्छे लोग यानि सज्ज लोगों का निवास हों।  

चाणक्य नीति श्लोक-
अनुपद्रवं देशमावसेत्।
भाव- ‘शांतिपूर्ण’ देश में ही रहें
अर्थ- जहां कभी उपद्रव, लड़ाई-झगड़े न होते हों, ऐसे ही देश में रहना चाहिए। जिस देश में अधिक रूप से उपद्रव हो, किसी न किसी बात पर देश के लोगो में आपसी मतभेद या झगड़े होते हो, वहां रहने वाला कोई देशवासी कभी खुशहाल जीवन को प्राप्त नहीं कर पाता। 

चाणक्य नीति श्लोक-
भूषणानां भूषणं सविनया विद्या।
भाव-‘विनम्रता’ का महत्व
अर्थ- विनय से युक्त विद्या सभी आभूषणों की आभूषण है। जो विद्वान विनम्र नहीं है, सहृदय नहीं है, लोकहितकारी नहीं है, वह विद्वान असुंदर से भी असुंदर है। वह अहंकारी और कुरूप है।

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