चाणक्य नीति: सेवकों को न होने दें बेलगाम वरना...

Edited By Jyoti,Updated: 18 May, 2020 02:51 PM

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चाणक्य की नीतियों की बात हो तो न केवल न प्राचीन समय के लोग बल्कि आज की युवा पीढ़ी भी इनकी नीतियों को मानती है।

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चाणक्य की नीतियों की बात हो तो न केवल न प्राचीन समय के लोग बल्कि आज की युवा पीढ़ी भी इनकी नीतियों को मानती है। इसका कारण इनकी नीतियों में दी गई ज्ञान की वो महत्वपूर्ण बातें हैं जो मनुष्य को उसके जीवन में आगे बढ़ने की सीख देते हैं। इतना ही नहीं चाणक्य नीति सूत्र में इन्होंने ऐसी और कई बातें बताई हैं जिनके बारे में जानकर इंसान एक अच्छा व्यक्ति तो बनता ही है बल्कि उसे वो सूझ बूझ हासिल हो जाती है जिसके दम पर वो उस मुकाम को हासिल कर पाचा है जिसके वो ख्वाब सजाता है।
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तो जैसे कि आप समझ चुके हैं हम आपको आज हम आपको आचार्य चाणक्य द्वारा बताई गई उस नीति के बारे में बताने वाले हैं जिसमें उन्होंने बताया है कि हर किसी को अपने सेवकों पर कंट्रोल रखना चाहिेए। यानि कि इनसे उतना ही मतलब रखना चाहिए जितने कि ज़रूरत हो। 

चलिए जानते हैं इस नीति से जु़ड़ा श्लोक- 

श्लोक- 
वल्लभस्य कारकत्वमधर्मयुक्तम्‌
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भावार्थ : राजा को चाहिए कि वह अपने सेवकों को बहुत अधिक मुंह न लगाए। इससे सेवक उहंड और बेलगाम हो जाते हैं और प्रजा को तरह-तरह के अनीतिपूर्ण आचरणों से दुखी करते हैं।

इस नीति के माध्यम से चाणक्य ये कहना चाहते हैं कि राजा को इस बात का ध्यान रखना चाहिेए कि उसके सेवकों हमेशा अपनी हद में रहें, क्योंकि इससे सेवकों को कोई हानि नहीं पहुंचती परंतु राजा को आगे चलकर बहुत तरह की परेशानियों से जूझना पढ़ता है। 

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