Edited By Jyoti,Updated: 20 Sep, 2020 06:29 PM
धार्मिक शास्त्रों में कहा गया है लालच चाहे किसी भी चीज़ का हो हमेशा इंसान की बर्बादी करता है। मगर यदि चाणक्य की मानें तो सबसे बुरा होता धन का लालच। बता दें आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में ऐसी बहुत ही बातों का जिक्र मिलता है।
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धार्मिक शास्त्रों में कहा गया है लालच चाहे किसी भी चीज़ का हो हमेशा इंसान की बर्बादी करता है। मगर यदि चाणक्य की मानें तो सबसे बुरा होता धन का लालच। बता दें आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में ऐसी बहुत ही बातों का जिक्र मिलता है। तो चलिए आपको बताते हैं कि चाणक्य के अनुसार जो व्यक्ति धन का अधिक लालच करता है, उसका क्या अंजाम होता है।
कस्यचिदर्थ स्वमिव
मन्यते साधु:।
साधु का धन संग्रह की आवश्यकता नहीं होती। वह सभी के धन को अपना ही धन मानकर चलते हैं। लोक कल्याण के किसी भी कार्य में, वे किसी भी धनिक को आदेश देकर कार्य निकाल लेते हैं।
परविभवेष्वादरो न कर्तव्य:।
दूसरे के धन अथवा वैभव का लालच नहीं करना चाहिए। सदैव अपने परिश्रम से कमाए हुए धन पर ही अपना अधिकार समझना चाहिए। किसी दूसरे के धन पर नजर रखना पाप है।