Edited By Jyoti,Updated: 07 Feb, 2021 04:32 PM
हर कोई चाहता है कि उसे अपने जीवन में मान-सम्मान की प्राप्ति हो। मगर केवल कामना करने से मान-सम्मान की प्राप्ति नहीं होती। जी हां, आचार्य चाणक्य की मानें
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हर कोई चाहता है कि उसे अपने जीवन में मान-सम्मान की प्राप्ति हो। मगर केवल कामना करने से मान-सम्मान की प्राप्ति नहीं होती। जी हां, आचार्य चाणक्य की मानें तो सम्मान पाने के लिए व्यक्ति में कुछ गुणों का होना अति आवश्यक माना जाता है। आज हम आपको आचार्य चाणक्य द्वारा बताई गई ऐसी ही नीतियों के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें उन्होंने इससे संबंधित बातें बताई हैं।
दृढ़ता का ही सम्मान होता है
चाणक्य नीति श्लोक-
स्थान एव नरा: पूज्यंते।
अपने स्थान पर बने रहने से ही मनुष्य पूजा जाता है। अपने स्थान पर स्थिर बने रहने से तात्पर्य यही है कि जो व्यक्ति अपनी बात पर दृढ़ रहता है उसको सभी श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं उसके अपने कर्मक्षेत्र में लोग उसके स्वभाव से परिचित हो जाते हैं। वे उसके सद्कर्मों के लिए उसे पूजते हैं और दुष्कर्मों के लिए गालियां देते हैं।
श्रेष्ठ आचरण करें
चाणक्य नीति श्लोक-
आर्यवृत्तमनुतिष्ठेत।
सदैव आर्यों (श्रेष्ठ जन) के समान ही आचरण करना चाहिए। धर्म, सदाचार, विनम्रता और नीति-सम्मत आचरण ही आर्यों का आचरण माना गया है। आचार्य चाणक्य ने आर्यों के आचरण का अनुसरण करने पर जोर दिया है।