Edited By Jyoti,Updated: 25 Mar, 2021 06:59 PM
अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको आए दिन चाणक्य नीतियों से अवगत करवाते आ रहे हैं। आज भी हम एक बार फिर एक चाणक्य नीति सूत्र का एक श्लोक लाए हैं
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अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको आए दिन चाणक्य नीतियों से अवगत करवाते आ रहे हैं। आज भी हम एक बार फिर एक चाणक्य नीति सूत्र का एक श्लोक लाए हैं, जिसमें चाणक्य ने बताया है कि प्रत्येक व्यक्ति को स्त्री, मित्र तथा नौकरों के साथ हमेशा संतुलित व्यवहार रखना चाहिए। जो व्यक्ति अपने जीवन में इस बात का ध्यान नहीं रखता उसका अहित होना स्वभाविक हो जाता है।
आइए जानते हैं चाणक्य नीति का यह श्लोक-
दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः ।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः ।।
अर्थात- दुष्ट पत्नी, धूर्त मित्र, मुहफट नौकरों और घर में सर्प का वास हो तो ऐसी स्थिति में मृत्यु को कोई टाल नहीं सकता (अर्थात् ये साक्षात् मृत्यु के समान ही है)
चाणक्य कहते हैं कि जो स्त्री कठोर वचन बोलती है, वह घर को नरक बना देती है। तो वहीं जो लोग अपने मित्र धूर्तता पूर्ण आचणर रखते हैं, ऐसे व्यक्ति हमेशा संदेह में रहते हैं, और अपने दिल की बात किसी से भी नहीं कर पाते।
अपने नौकर के मुहफट होने से मालिक का आत्मविश्ववास डगमगाने लगता है और मालिक के निर्णय को प्रभावित करता है। चाणक्य कहते हैं कि ये तीनों लोगों को कारक माना जाता है, जिनसे रहने से व्यक्ति का अहित अवश्य होता है।
इसलिए जितना हो सके ऐसे व्यक्तियों से दूर रहना चाहिए। इनकी निकटता सांप के साथ घर में रहने के समान मानी जाती हैं। इससे व्यक्ति को मृत्यु तुल्य कष्ट होगा, इसलिए ऐसे लोगों से संतुलित व्यवहार रखना चाहिए। अगर इनके बीच संतुलन बिगड़ जाए तो उन्हें दूर करने में ही सबकी भलाई होती है। चाणक्य कहते हैं कि इनकी उपस्थिति घर में रह रहे सर्प के समान हैं, जो एक दिन डसता ज़रूर है।
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