Edited By Jyoti,Updated: 11 Apr, 2021 08:30 PM
आचार्य चाणक्य ने अपने जीवन काल कई लोगों को न केवल ज्ञान का असली मतलब समझाया उन्हें सफलता प्राप्त करवाने में भी कई तरह से मदद की। इसकी सबसे बड़ी उदाहरण थे।
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आचार्य चाणक्य ने अपने जीवन काल कई लोगों को न केवल ज्ञान का असली मतलब समझाया उन्हें सफलता प्राप्त करवाने में भी कई तरह से मदद की। इसकी सबसे बड़ी उदाहरण थे। चंद्रगुप्त मौर्य, जिन्हें इन्होंने अपने ज्ञान और नीतियों के दम पर सम्राट बनवाया आया। यही कारण है कि आज के समय में भी लोग इनकी नीतियों को अपने जीवन में लागू करते हैं। तो आइए जानते हैं इनके द्वारा बताए नीति श्लोक जिसमें मानव जीवन से जुड़ी कई अहम पहलुओं के बारे में बताया गया है।
नीति श्लोक-
विषादप्यमृतं ग्राह्यम्।
भावार्थ- विष भी दवा बन सकता है
विष में यदि अमृत हो तो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। कभी-कभी विष भी दवा का काम करता है इसलिए विष से विष के प्रभाव को नष्ट करने के लिए उसे दवा के रूप में प्रयोग करते हैं।
नीति श्लोक-
अवस्थया पुरुष: सम्मान्यते।
भावार्थ- विशेष स्थिति में ही सम्मान मिलता है
जो राजा प्रभा के मनोनुकूल कार्य करता है, वह एक ऐसी स्थिति बना लेता है कि प्रजा उसे सम्मान की दृष्टि से देखने लगती है।
नीति श्लोक-
वयोऽनुरूपो वेश:।
भावार्थ- उम्र के अनुरूप ही वेश धारण करें
जो व्यक्ति अपनी आयु को ध्यान में रख कर पहनावा नहीं बदलता अथवा आयु के समान वस्त्र धारण नहीं करता वह समाज में उपहार का पात्र बनता है। अत: अपनी उम्र के अनुरूप ही वस्त्र धारण करने चाहिएं।
नीति श्लोक-
स्वा यनुकूलो भृत्य:।
भावार्थ-सेवक को स्वामी के अनुकूल कार्य करने चाहिए
किसी भी सेवक का यह कर्तव्य होता है कि वह जो भी कार्य करे, वह अपने स्वामी की इच्छा के अनुसार ही करे। उसे स्वामी के हर हाव-भाव और रुचियों को भली-भांति समझ लेना चाहिए।