चाणक्य नीति: खुशहाल जीवन जीने के लिए इन बातों का रखें ध्यान

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Mar, 2018 03:56 PM

chanakya niti in hindi

राजनीति और कूटनीतिज्ञ के महान ज्ञाता आचार्य चाणक्य ने अपने जीवन से प्राप्त अनुभवों का चाणक्य नीति में उल्लेख किया है। जिन पर अमल करके व्यक्ति खुशहाल जीवन यापन कर सकता है। चाणक्य ने लोगों को परखने की अलग-अलग परिस्थितियों के बारे में बताया है।

राजनीति और कूटनीतिज्ञ के महान ज्ञाता आचार्य चाणक्य ने अपने जीवन से प्राप्त अनुभवों का चाणक्य नीति में उल्लेख किया है। जिन पर अमल करके व्यक्ति खुशहाल जीवन यापन कर सकता है। चाणक्य ने लोगों को परखने की अलग-अलग परिस्थितियों के बारे में बताया है। उसी प्रकार उन्होंने धन से संबंधित भी एक नीति का उल्लेख किया है। जिसको ध्यान में रखने से हानि होने की संभावनाएं कम हो जाती है। चाणक्य की इन नीतियों का ध्यान न रखने से व्यक्ति को अवश्य नुक्सान का सामना करना पड़ सकता है। 

 

आचार्य चाणक्य ने व्यक्तियों को परखने के लिए अलग-अलग परिस्थिति के बारे में बताया है। जैसे सेवक को तब परखना चाहिए जब वह कोई कार्य नहीं कर रहा हो। उसी प्रकार रिश्तेदार को कठिनाई में, मित्र को संकट में अौर पत्नी को विपत्ति में परखना चाहिए।

 

व्यक्ति के सिए संतुलित दिमाग जैसी सादगी, संतोष जैसा सुख नहीं है। उसी प्रकार लालच जैसी बीमारी अौर दया जैसा कोई पुण्य नहीं है।

 

किसी भी कार्य की शुरुआत करें तो उसे असफलता के डर से न छोड़ें। व्यक्ति को अपना प्रत्येक कार्य ईमानदारी से करना चाहिए। ईमानदारी से किए कार्य में व्यक्ति सदैव प्रसन्न रहता है। 

 

चाणक्य के अनुसार यदि किसी का स्वभाव अच्छा है तो उसे किसी अौर गुण की क्या आवश्यकता है? यदि व्यक्ति के पास प्रसिद्धि है तो उसे किसी अौर श्रृंगार की क्या आवश्यकता है?

 

श्रेष्ठ व्यक्ति के लिए अपमानित होकर जीने से अच्छा मरना है। चाणक्य के अनुसार मृत्यु एक क्षण का दुख देती है लेकिन अपमान से व्यक्ति प्रतिदिन मरता है।

 

सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे लोगों से मित्रता नहीं करनी चाहिए जो आपसे कम या अधिक प्रतिष्ठित हों। इस प्रकार की मित्रता से किसी को खुशी नहीं मिलती। 

 

व्यक्ति समुद्र से भी शिक्षा ले सकता है। समुद्र बादलों को अपना जल देता है अौर बादलों द्वारा लिया वह जल मीठा हो जाता है। ऐसे ही हमे भी अपना धन उन्हीं लोगों को देना चाहिए जो योग्य हों अौर जो उसका उचित से प्रयोग कर सकें।

 

जो हमारे चिंतन में रहता है वह करीब है, भले ही वह वास्तविकता में हमसे दूर ही क्यों न हो, लेकिन जो हमारे हृदय में नहीं है वह करीब होकर भी बहुत दूर है।

परमात्मा तक पहुंचने के लिए वाणी, मन, इन्द्रियों की पवित्रता अौर एक दयालु हृदय की आवश्यकता होती है। इनसे भगवान प्रसन्न होते हैं। 
 

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