Edited By Jyoti,Updated: 21 Mar, 2021 02:22 PM
प्राचीन समय की बात करें राजाओं-महाराजाओं की प्रजा में जब कोई व्यक्ति कोई अपराध करता था, उसे दंड दिया जाता था। ये प्रथा आज के समय में चलती आ रही हैै। जब कोई गलती करता है सजा मिलना जाहिर सी बात है।
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प्राचीन समय की बात करें राजाओं-महाराजाओं की प्रजा में जब कोई व्यक्ति कोई अपराध करता था, उसे दंड दिया जाता था। ये प्रथा आज के समय में चलती आ रही हैै। जब कोई गलती करता है सजा मिलना जाहिर सी बात है। आचार्य चाणक्य के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को दंड के अनुरूप ही दंड देना चाहिए। इससे व्यक्ति के अंदर भय बना रहता है। परंतु चाणक्य कहते हैं कि इस बात का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए कि किसी को भी उसकी गलती से बड़ी सजा नहीं देनी चाहिए, न ही बहुत छोटी-मोटी सजा देना चाहिए। आइए जानते हैं कि चाणक्य नीति सूत्र में वर्णन इससे जुड़े श्लोक के बारे में-
नीति श्लोक-
अपराधानुरूपो दंड:।
भावार्थ- अपराध के अनुरूप ही दंड दें
अर्थात- राजा को चाहिए कि जैसा किसी का अपराध हो उसे उसी के अनुरूप दंड दे। इससे प्रजा में राजदंड का भय बना रहता है और प्रजा शांत रहती है।
इसके अलावा चाणक्य बताते हैं कि व्यक्ति तो जिस प्रकार का प्रश्न किया जाए, उसके अनुरूप ही उत्तर देना चाहिए। ये है इससे संबंधित नीति श्लोक-
नीति श्लोक-
कथानुरूपं प्रतिवचनम्।
भावार्थ- कथन के अनुसार ही उत्तर देना उचित
अर्थात- राजा का कर्त्तव्य है कि वे उनके सम्मुख जिस प्रकार से कोई बात कही जाए, उसी रूप में उसका उत्तर भी दें, तभी उनका प्रभाव जम पाता है। ऐसा करने से ही प्रजा उनका सम्मान करती है। आम भाषा में कह सकते हैं कि व्यक्ति को उतना ही बोलना चाहिए, जितने की जरूरत हो।