आज कल दिखावे के इस जमाने में लोग एक दूसरे से ऊंचा दिखने के लिए हर कोशिश करते हैं। इस होड़ की लगभग प्रत्येक व्यक्ति में प्रतिस्पर्धा मची हुई है।
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आज कल दिखावे के इस जमाने में लोग एक दूसरे से ऊंचा दिखने के लिए हर कोशिश करते हैं। इस होड़ की लगभग प्रत्येक व्यक्ति में प्रतिस्पर्धा मची हुई है। अपने आप को अच्छा व बड़ा दिखाने के लिए लोग कई बार मुसीबत में भी फंस जाते हैं। इस मामले में खासतौर में महिलाएं आगे मानी जाती हैं। सुंदर दिखने के चक्कर में वो अपने हैसियक के कई बढ़ चढ़कर वस्त्र और आभूषण खरीद लेते हैं। इस संदर्भ में आचार्य चाणक्य का क्या कहना है आइए जानते हैं।
चाणक्य नीति श्लोक-
विभवानुरूपमाभरणम्।
भावार्थ- हैसियत के अनुरूप आभूषण और वस्त्र धारण करें
अर्थात- मनुष्य के शरीर पर वही आभूषण और वस्त्र शोभित होते हैं जो उसकी हैसियत के अनुसार होते हैं। यदि एक निर्धन व्यक्ति राजसी वस्त्र धारण करे तो लोग उसे विदूषक ही समझेंगे। अत: वेश भूषा, देश काल और अपने जीवन स्तर के अनुसार ही धारण करनी चाहिए, तभी गरिमा और प्रभाव उत्पन्न होता है।
इसके अलावा आचार्य बताते हैं हर किसी को अपने कुल के अनुसार व्यवहार रखना चाहिए, उसकी मर्यादों को अपनाना चाहिए। किसी भी हालात में अपने कुल की किसी प्रकार की क्षति नही होनी चाहिए।
चाणक्य नीति श्लोक-
कुलानुरूपं वृत्तम्।
भावार्थ- कुल के अनुसार ही व्यवहार करें
अर्थात- जो व्यक्ति अपने कुल की मर्यादाओं के समान आचरण नहीं करता, उससे उसके कुल की मर्यादा को ठेस पहुंच सकती है। अत: उसे अपने सभी व्यवहार और कर्म अत्यंत सजगता के साथ करने चाहिएं।
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