Edited By Jyoti,Updated: 14 Mar, 2021 01:04 PM
धार्मिक ग्रंथों में अक्सर पढ़ने को मिलता है इंसान को अपनी संगति का खास ध्यान रखना चाहिए क्योंकि संगति जैसी होती है इंसान खुद भी वैसा बनना लगता है।
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धार्मिक ग्रंथों में अक्सर पढ़ने को मिलता है इंसान को अपनी संगति का खास ध्यान रखना चाहिए क्योंकि संगति जैसी होती है इंसान खुद भी वैसा बनना लगता है। मगर आज आपको इस संदर्भ के बारे में नहीं, बल्कि इससे मिलते जुलते एक वाक्य के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। जिस तरह बुरी संगति में पड़ जाने के बाद व्यक्ति को केवल बुरे काम ही नजर आने लगते हैं। चाणक्य बताते हैं ठीक ऐसी ही भ्रष्ट व्यक्ति के साथ होता है। उसकी दृष्टि में सब उसी ही की तरह भ्रष्ट मालूम पड़ते हैं। आइए जानते हैं चाणक्य नीति सूत्र में दिए इससे संबंधित श्लोक के बारे में-
चाणक्य नीति श्लोक-
भावार्थ- भ्रष्ट व्यक्ति की दृष्टि में सभी भ्रष्ट
स्वयमशुद्ध: परानाशंकते।
अर्थात- स्वयं अशुद्ध व्यक्ति दूसरे से भी अशुद्धता की शंका करता है। जो व्यक्ति अपने आचरण में भ्रष्ट होता है, वह संसार में प्रत्येक व्यक्ति को अपने जैसा ही भ्रष्ट मानकर चलता है। इसलिए व्यक्ति को चाहिए ऐसे लोगों से जितनी हो सके दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
इसके अलावा आचार्य चाणक्य के नीति सूत्र में एक अन्य श्लोक वर्णित है जिसमें चाणक्य कहते हैं किसी के लिए भी अपने स्वभाव को बदलना आसान नहीं होता।
चाणक्य नीति श्लोक-
स्वभावो दुरतिक्रम:।
भावार्थ- कठिन है स्वभाव बदलना
अर्थात- स्वभाव का अतिक्रमण अत्यंत कठिन है। जिस व्यक्ति का जैसा स्वभाव बन जाता है, उसे सरलता के साथ नहीं बदला जा सकता क्योंकि उसे ऐसा करने की आदत पड़ चुकी होती है। जैसे ‘चोर चोरी करना छोड़ दे, पर हेरा-फेरी करना नहीं छोड़ता’।