चाणक्य ने अपने जीवन में ऐसी कई नीतियों की रचना की है, जिसका अगर व्यक्ति अपने जीवन में अनुसरण
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चाणक्य ने अपने जीवन में ऐसी कई नीतियों की रचना की है, जिसका अगर व्यक्ति अपने जीवन में अनुसरण कर ले तो उसका जीवन सुधर सकता है। उनकी नीतियों में बताया गया है कि कुछ व्यक्तियों को कितना भी समझा लिया जाए उनकी प्रवृति कभी नहीं बदल सकती है। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे होते हैं कि उन्हें एक बार समझा लेने से ही वह हर बात को समझ जाते हैं। ऐसे ही आज हम आपको चाणक्य द्वारा बताएंगे कि कैसे लोगों से दूरी बनाकर चलना चाहिए।

श्लोक-
शिरसि प्रस्थाप्यमानोऽपि वहनिर्दहत्येव:।
अर्थ : आग सिर में स्थापित करने पर भी जलाती (दुख पहुंचाती) है।

भावार्थ : आग को चाहे सिर पर धारण कर लिया जाए, वह जलाएगी ही, यह तो उसका स्वभाव है। इसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति का कितना ही सम्मान कर लिया जाए, वह सदा दुख ही देता है।
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