Edited By Lata,Updated: 20 Oct, 2019 02:19 PM
चाणक्य ने अपने जीवन में बहुत सारी ऐसी नीतियों की रचना की है, जिसे कोई भी मनुष्य अगर अपने जीवन में उतार लेता है
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चाणक्य ने अपने जीवन में बहुत सारी ऐसी नीतियों की रचना की है, जिसे कोई भी मनुष्य अगर अपने जीवन में उतार लेता है तो उसका जीवन सुधर सकता है। उन्होंने जीवन को सुधारने के लिए कई ऐसी नीतियां भी बताई हैं, जिसे अपनाकर व्यक्ति अपने जीवन में आन वाली हर दुख का सामना कर सकता है। ऐसे में उनका कहना है कि अगर किसी को वृद्ध अवस्था में कोई बीमारी आकर घेर लेती है तो उसे उसी समय ठीक कर लेनी चाहिए।
श्लोक
जीर्णशरीरे वर्धमानं व्याधिर्नोपेक्ष्येत्।
अर्थ : कमजोर शरीर में बढ़ने वाले रोग की उपेक्षा न करें।
भावार्थ : वृद्धावस्था और रोग होने के कारण शरीर जर्जर हो जाता है। ऐसे में मामूली-सा रोग भी भयंकर रूप धारण कर सकता है इसलिए छोटी-से-छोटी बीमारी की भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। उसका तत्काल उपचार करना चाहिए।