Edited By Lata,Updated: 25 Jul, 2018 11:31 AM
एक बार एक साधु भिक्षाटन करते किसी गांव से गुजर रहा था। वह जब भी किसी के दरवाजे पहुंचता तो बोल पड़ता, ‘‘कोई किसी का नहीं होता।’’ भिक्षा मिलने के बाद वह अन्य दरवाज़े जाता और अपनी वही बात दोहराता।
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एक बार एक साधु भिक्षाटन करते किसी गांव से गुजर रहा था। वह जब भी किसी के दरवाजे पहुंचता तो बोल पड़ता, ‘‘कोई किसी का नहीं होता।’’ भिक्षा मिलने के बाद वह अन्य दरवाज़े जाता और अपनी वही बात दोहराता।
इसी क्रम में बढ़ते हुए वह एक सेठ के यहां पहुंचा। सेठ अपने हिसाब-किताब के कार्यों में व्यस्त था। भीख में उसने साधु को एक 10 रुपए का नोट थमा दिया। साधु नोट रखते हुए बोला, ‘‘कोई किसी का नहीं होता।’’
सेठ को आश्चर्य हुआ। उन्होंने उसे रोका और अपने नौकर को उसे भोजन करवाने का आदेश दिया। कुछ ही देर में साधु के सामने भोजन हाजिर था। साधु ने बिना कुछ बोले भोजन ग्रहण किया और चलते वक्त फिर से वही बात दोहराई, ‘‘कोई किसी का नहीं होता।’’
सेठ को पुन: आश्चर्य हुआ पर इस वक्त वह कुछ गुस्से में भी था। उन्होंने साधु से कहा, ‘‘आप यह कैसे कह सकते हैं कि कोई किसी का नहीं होता? मैंने आपको पैसे दिए, भोजन कराया, फिर भी आप कहते हैं कि कोई किसी का नही होता।’’
साधु ने शालीनता से जवाब दिया, ‘‘बेटा, यही सत्य है। तुम्हारे सबसे अपने भी तुम्हारे नहीं हैं, अगर यकीन न हो तो मैं तुम्हें साबित करके दिखा सकता हूं लेकिन इसके लिए तुम्हें मेरे कहे अनुसार एक नाटक करना होगा।’’
साधु से पूरी योजना समझने के बाद सेठ ने सहमति दे दी और नाटक शुरू हो गया। अगले ही क्षण सेठ मर चुका था। साधु ने घरवालों से कहा कि मेरे पास इन्हें जिन्दा करने के अचूक नुस्खे हैं। अगर आप चाहें तो मैं उन्हें आजमा सकता हूं। साधु ने गोमूत्र मंगाया और कुछ मंत्र बुदबुदाकर सभी घरवालों से कहा, ‘‘इसे जो कोई भी पिएगा उसके तत्काल बाद ही सेठ जीवित हो जाएगा लेकिन इसे पीने वाले की तुरंत ही मौत हो जाएगी।’’
घर में कोई इस कार्य को करने के लिए तैयार नहीं था। अंत में साधु ने पत्नी को बुलाया। साधु ने पत्नी से आग्रह किया कि तुम इसे पीकर अपने पति को वापस ले आओ। तब पत्नी बोली ‘‘उन्हें वापिस लाकर क्या फ़ायदा जब मैं ही न रहूंगी।
पत्नी के शब्द सेठ के कानों में पड़ते ही वह उठ खड़ा हुआ क्योंकि उसने तो मरने का नाटक किया हुआ था। उठते ही सेठ ने साधु के पैर पकड़ लिए और कहा, ‘‘महाराज! मुझे अपनी शरण में ले लीजिए। मैं समझ गया कि इस दुनिया में सभी मोहजाल में फंसे हैं। आप सही कह रहे थे कि इस दुनिया में कोई किसी का नहीं होता।’’
सेठ सब कुछ त्याग कर साधु के साथ भिक्षुक बनने और सिद्धि को प्राप्त करने निकल पड़ा।
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