Edited By Jyoti,Updated: 18 Nov, 2020 12:55 PM
सनातन धर्म में कार्तिक मास का अधिक महत्व है, जिस कारण इस मास में पड़ने वाले तमाम त्यौहारों आदि का महत्व भी कई गुना बढ़ जाता है।
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सनातन धर्म में कार्तिक मास का अधिक महत्व है, जिस कारण इस मास में पड़ने वाले तमाम त्यौहारों आदि का महत्व भी कई गुना बढ़ जाता है। हाल ही में भारतवर्ष में दिवाली व अन्य प्रमुख त्यौहारों की धूम देखने को मिली। बता दें धनतेरस, नरक चतुर्दशी दिवाली, गोवर्धन पूजा व भाई दूज सभी सनातन धर्म के प्रुमख पर्व माने जाते हैं जो कार्तिक मास में ही पड़ते है। दिवाली आदि के बाद अब बारी आ चुकी है कार्तिक मास में एक और प्रमुथ त्यौहार की। जो प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व को सूर्य उपासना का पर्व कहा जाता है। मुख्य रूप से सूर्य उपासना का ये पर्व बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। अगर बिहार की बात करें तो कहा जाता है कि यहां यह पर्व ने केवल बिहार मे हिन्दुओं द्वारा ही नहीं बल्कि इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी द्वारा भी मनाया जाता है।
इसके अलावा इस दिन छठी मैया की आराधना का भी अधिक महत्व है। मगर छठी मैया हैं कौन, और वो कैसी कृपा करते हैं? इस बारे में आज भी बहुत से लोग जानने के इच्छुक हैं, तो चलिए आपको बताते हैं सनातन धर्म के समस्त ग्रंथों या पुराणों में ब्रह्मवैवर्त पुराण के बारे में जिसमें छठी मैया के बारे में एक श्लोक वर्णित है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण की मानें तो प्रकृति खंड में बताया गया है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देव सेना कहा गया है। चूंकि इन्हें प्रकृति का छठा अंश हैं इसलिए इन्हें षष्ठी भी कहा जाता है। सनातन धर्म के पुराणों में षष्ठी देवी को सभी ‘बालकों की रक्षा’ करने वाली तथा लंबी आयु प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। बताया जाता है कि आज भी देश के कई हिस्सों में बच्चों के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजा या छठी पूजा का प्रचलन है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित श्लोक-
''षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता।
बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा।।
आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षणकारिणी।|
सततं शिशुपार्श्वस्था योगेन सिद्धियोगिनी।।"
-(ब्रह्मवैवर्तपुराण,प्रकृतिखंड 43/4/6)
स्थानीय भाषा में षष्ठी देवी को ही छठी मैया कहा जाता है। इसके अलावा षष्ठी देवी को ‘ब्रह्मा की मानसपुत्री’ भी कहा जाता है।
देवी दुर्गा का यह रूप ही हैं छठी मैया
सनातन धर्म के पुराणों में देवी दुर्गा का रूप कात्यायनी देवी ही छठी माया है। इनकी पूजा मुख्य रूप से नवरात्रि में षष्ठी तिथि को करने का विधान है। शास्त्रों में बताया गया है कि मां कात्यायनी शेर पर सवार होती हैं, इनकी चार भुजाएं हैं, बाएं हाथों में कमल का फूल व तलवार धारण करती हैं। दाएं हाथ अभय और वरद मुद्रा में रहते हैं। मां कात्यायनी योद्धाओं की देवी हैं।
राक्षसों के अंत के लिए माता पार्वती ने कात्यायन ऋषि के आश्रम में ज्वलंत स्वरूप में प्रकट हुई थीं, इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। छठी मैया भगवान सूर्य की बहन हैं। छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए सूर्य देव की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है।
इनकी पूजा से मिलते हैं ये बड़े लाभ-
नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। तो वहीं जिनकी संतान पर किसी तरह का कोई संकट आ रहा हो छठी देवी संतान की रक्षा करती हैं तथा उनके जीवन को खुशहाल करती हैं।
इनकी आराधना से कई पवित्र यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है, परिवार में सुख, समृद्धि, धन संपदा और परस्पर प्रेम में वृद्धि होती है।
इनकी पूजा से विवाह और करियर संबंधी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, घर से निर्धनता दूर होती है। साथ ही साथ धन संपदा का आशीष मिलता है।
नियम पूर्वक व्रत न करने से हो सकता है नुकसान-
कहा जाता है कि इस व्रत को नियम पूर्वक करना बहुत आवश्यक होता है। जो व्यक्ति इनके नियमों का उल्लंघ न करता है, उसे कुफल प्राप्त होता है। धार्मिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में राजा सागर ने सर्य षष्ठी व्रत सही तरह से नहीं किया था, जिसके परिणाम स्वीरूप उसके 60 हज़ार पुत्र मर गए थे।