...तो क्या सच में दो प्रेमियों के लिए यहां बस गई थी देवी मां!

Edited By Jyoti,Updated: 25 Sep, 2019 03:26 PM

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आप सब ने ये कहावत तो सुनी ही होगी कि अगर प्रेम सच्चा हो तो पूरी कायनात इसे मिलवाने में लग जाती है। मगर क्या आप अपने आंखों के सामने ऐसा कुछ होता देखा या फिर अपने कानों से ऐसा कुछ सुना है जिससे आपको इन बातों पर यकीन हो जाए।

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आप सब ने ये कहावत तो सुनी ही होगी कि अगर प्रेम सच्चा हो तो पूरी कायनात इसे मिलवाने में लग जाती है। मगर क्या आप अपने आंखों के सामने ऐसा कुछ होता देखा या फिर अपने कानों से ऐसा कुछ सुना है जिससे आपको इन बातों पर यकीन हो जाए। अगर नहीं तो चलिए आज हम बताते हैं हिंदू धर्म के एक प्राचीन मंदिर से जुड़ा एक ऐसा किस्सा है जो आपको इस बात पर विश्वास करने को मज़बूर कर देगा। जी हां, आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां देवी मां दो प्रेमियों को मिलवाने के लिए प्रकट हुई थी। आइए जानते हैं इतिहास के पन्‍नों में दर्ज़ इस किस्‍सा का रहस्य-
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22सौ वर्ष पुराना है इतिहास
दरअसल जिस इतिहास की हम बात कर रहे हैं वो करीब 22सौ वर्ष पुराना है। ये इतिहास छत्‍तीसगढ़ के डोंगरगढ़ का है जो पुराने समय में कामाख्‍या नगरी के नाम से प्रसिद्ध था। बताया जाता है यहां 22सौ वर्ष पूर्व राजा वीरसेन का शासन था, जो एक प्रजापालक राजा था। यही कारण था कि हर कोई उनका बहुत मान-सम्मान करता था। इनके जीवन की सबसे दुखद बात यही थी कि उनके कोई संतान नहीं थी। संतान की प्राप्ति के लिए पंडितों ने उन्हें शिव जी और मां दुर्गा की उपासना करने की सलाह दी। उन्होंने ऐसा ही किया बल्कि साथ ही अपने नगर में मां बम्‍लेश्‍वरी के मंदिर की स्‍थापना करवाई। जिसके बाद उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्त हुआ। उनके पुत्र हुए कामसेन जो कि राजा की ही तरह प्रजा के प्रिय राजा बने। लेकिन उनका पुत्र मदनादित्‍य उनसे बिल्‍कुल विपरीत था।

कुछ यूं शुरू हुआ राजा कमसेन के राज्‍य में प्रेम का किस्सा
कि राजा कमसेन के राज्‍य में एक दिन संगीत कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इसमें प्रसिद्ध संगीतज्ञ माधवनल और नृतकी कामकन्‍दला भी शामिल हुए। नृत्‍य शुरू हुआ लेकिन उसमें लय, ताल की समीकरण कुछ ठीक नहीं बैठ रही थी। तभी माधवनल ने बताया कि आखिर किस वजह से लय, ताल का तालमेल नहीं बन पाया। राजा कमसेन माधवनल के इस ज्ञान से काफी प्रभावित हुए और उन्‍होंने माधवनल को अपनी मोतियों की माला उपहार स्‍वरूप दे दी। लेकिन उसने वह माला कामकन्‍दला को सौंप दी। इससे नाराज़ होकर राजा ने उसे राज्‍य से बाहर निकाल दिया। उधर कामकन्‍दला और माधवनल पहली ही नज़र में एक-दूसरे को अपना दिल दे बैठे थे।
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एक ओर जहां कामकन्‍दला और माधवनल एक-दूसरे से प्रेम करने लगे थे। वहीं राजा कमसेन का पुत्र भी कामकन्‍दला को पसंद करने लगा। माधवनल को कुछ हो न जाए इसके डर से कामकन्‍दला ने मदनादित्‍य से प्रेम का झूठा नाटक रचाया। लेकिन एक दिन मदनादित्‍य को सारा सच पता चल गया। जिसके बाद उसने कामकन्‍दला को राजद्रोह के आरोप में बंदी बना लिया और सिपाहियों को माधवनल को खोजने के लिए भेज दिया। उधर सिपाहियों से बचता हुआ माधवनल राजा विक्रमादित्‍य के पास मदद के लिए पहुंचा। उसकी तकलीफ सुनकर राजा ने उनकी मदद की। आखिर में तमाम संघर्ष और युद्ध के बाद माधवनल को कामकन्‍दला मिल गई।

परंतु राजा विक्रमादित्‍य ने दोनों के प्रेम को परखने के लिए कामकन्‍दला से कहा कि माधवनल की युद्ध में मृत्‍यु हो गई। ऐसा सुनते ही कामकन्‍दला ने समीप स्थित तालाब में कूदकर अपनी जान दे दी। उधर माधवनल को जैसे ही पता चला तो उसने भी अपने प्राण त्‍याग दिए। इसके बाद विक्रमादित्‍य ने देवी बगुलामुखी जो कि आज के समय में बम्‍लेश्‍वरी देवी के नाम से जानी जाती हैं, उनकी आराधना की और दोनों के लिए जीवनदान मांगा। साथ ही मां से प्रार्थना की कि वह अपने जागृत रूप में डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्‍थापित हों, ताकि सभी सच्‍चे प्रेमियों को मां की कृपा और आशीर्वाद मिल सके। कहा जाता है जिसके बाद मां बम्‍लेश्‍वरी देवी वहां ऊंचे पर्वत पर विराजमान हो गईं।
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