इस भूल के कारण दंपत्ती रह जाते हैं Childless

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Nov, 2020 10:15 PM

childless couple and astrology

मातृ श्राप में जातक द्वारा माता की आत्मा दुखाने, उसे तरह-तरह के कष्ट देने से उसकी बद्दुआ श्राप बनकर जातक को संतीनहीन बना देती है जिसको ग्रहों के प्रभाव के माध्यम से निम्रलिखित सूत्रों में दर्शाया गया है।

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Childless couples: मातृ श्राप में जातक द्वारा माता की आत्मा दुखाने, उसे तरह-तरह के कष्ट देने से उसकी बद्दुआ श्राप बनकर जातक को संतीनहीन बना देती है जिसको ग्रहों के प्रभाव के माध्यम से निम्रलिखित सूत्रों में दर्शाया गया है।
 
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यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में छठे, आठवें भाव के स्वामी लग्न में, चतुर्थेश (सुखेश) एवं चंद्रमा बारहवें भाव में हो। बृहस्पति पाप ग्रहों से युत होकर पंचम भाव में हो तो माता के श्राप से संतान की हानि होती है।

यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में लग्न पापी ग्रहों के मध्य में हो तथा क्षीण (अस्त एवं नीच) चंद्रमा सप्तम भाव में हो और चतुर्थ, पंचम भाव में शनि राहू  हो तो माता के श्राप से संतान हानि होती है।

अष्टमेश पंचम भाव में हो और पंचमेश अष्टम भाव में हो अर्थात दोनों परस्पर राशि परिवर्तन करके बैठे हों तथा चंद्रमा व चतुर्थेश (सुखेश) छठे, आठवें व बारहवें भाव में हो तो माता के श्राप से संतान हानि होती है।
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यदि लग्न में कर्क राशि हो तथा मंगल-राहू से युत हो। चंद्र शनि पंचम भाव में हों तो माता के श्राप से संतान हानि होती है।

यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में लग्न, पंचम, अष्टम एवं द्वादश भाव में मंगल, राहू, सूर्य एवं शनि हों तथा चतुर्थेश चतुर्थ अथवा अष्टम या द्वादश भाव में हो तो माता के श्राप से संतान हानि होती है।

यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में गुरु (बृहस्पति), मंगल या राहू से या दोनों से युत हो और पंचम भाव में शनि, चंद्र हों तो माता के श्राप से संतान की हानि होती है।
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यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में पंचमेश चंद्र अपनी नीच राशि में या पापी ग्रहों के मध्य में हो और चतुर्थ, पंचम भाव में पापी ग्रह हों तो माता के श्राप से संतान की हानि होती है।

यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में ग्यारहवें भाव में शनि हो और चतुर्थ भाव में पापी ग्रह हों तथा अपनी नीच राशि में चंद्रमा पंचम भाव में हो तो माता के श्राप से संतान की हानि होती है।

यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में पंचमेश छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तथा चंद्रमा पापांश (पापी ग्रहों के अंशों मेंं) हो लग्न एवं पंचम भाव में पापी ग्रह हों तो माता के श्राप से संतान की हानि होती है।
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यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में पंचमेश चंद्रमा शनि, राहू, मंगल से युत हो और कारक ग्रह गुरु नवम भाव या पंचम भाव में हो तो माता के  श्राप से संतान हानि होती है।

यदि कुंडली में चतुर्थेश मंगल, शनि, राहू से युत हो और पंचम भाव एवं लग्र सूर्य चंद्रमा से युत हो तो मातृ श्राप से संतान हानि होती है।

लग्नेश, पंचमेश छठे भाव में हों तथा चतुर्थेश अष्टम भाव में हो। अष्टमेश एवं दशमेश लग्न में हों तो ऐसे जातक की संतान हानि माता के श्राप से होती है।
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यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में वृश्चिक लग्न में शनि हो और चतुर्थ भाव में पापी ग्रह बैठे हों, पंचम भाव में चंद्रमा हो तो ऐसे व्यक्ति की माता के श्राप के कारण संतान हानि होती है।

यदि चतुर्थ भाव का स्वामी मंगल होकर राहू शनि से युत हो और लग्र में सूर्य एवं चंद्रमा हो तो ऐसे जातक की संतान हानि माता के श्राप के कारण होती है।

यदि किसी जातक की कुंडली में चतुर्थेश अष्टम भाव में हो और छठे भाव में लग्नेश-पंचमेश युति करके बैठे हों तथा षष्ठेश एवं दशमेश (कर्मेश) लग्न में युति किए बैठे हों तो ऐसे व्यक्ति की संतान हानि माता के श्राप के कारण होती है।

यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में अष्टमेश पंचम भाव में हो और पंचमेश अष्टम भाव में हो तथा चंद्रमा चतुर्थेश से युति करके छठे भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति की संतान हानि माता के श्राप के कारण होती है।

उपाय :
प्रतिदिन मातातुल्य स्त्रियों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें।
चंद्रमा के उपाय करें।

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