Childless jyotish yog- कुंडली के ये दोष IVF treatment को भी बनाते हैं असफल

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Feb, 2022 02:32 PM

childless jyotish yog

भारतीय मनीषियों ने अपने शास्त्रों में प्रत्येक गृहस्थी को अपने गृहस्थाश्रम में ऋषि ऋण, पिता-ऋण एवं देव ऋण तीनों ऋणों से निवृत्त होने की अनिवार्यता पर बल दिया है। ‘मनु स्मृति’ के अनुसार प्रत्येक गृहस्थी अपने

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Reasons for childlessness in astrology: भारतीय मनीषियों ने अपने शास्त्रों में प्रत्येक गृहस्थी को अपने गृहस्थाश्रम में ऋषि ऋण, पिता-ऋण एवं देव ऋण तीनों ऋणों से निवृत्त होने की अनिवार्यता पर बल दिया है। ‘मनु स्मृति’ के अनुसार प्रत्येक गृहस्थी अपने गृहस्थ जीवन में धर्मानुकूल संतानोत्पत्ति कर पितृ-ऋण से मुक्त होता है। ज्योतिष शास्त्र में पितृ-ऋण से निवृत्त होने की घोषणा कुंडली के पंचम भाव से की जाती है, अत: कुंडली के पंचम भाव को संतान भाव अथवा सुत भाव भी कहा जाता है।

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‘पंचमस्था: शुभा: सर्वेपुत्रसंतानकारका:।’

सभी शुभग्रह पंचम भाव से संबंध रखने पर पुत्रकारक होते हैं।

‘सिहेदेवपुरोहिते सुतपतौ सार्केचपुत्रांगगौ पापौ वा निधनेरवौसुते पुत्रेचपुत्राधिवे संयुक्तेतमसाथ  वाा व्ययपतौ लग्ने च रंघ्राधिपे पुत्रेपितृभवाद् पत्थरहित : शापात्खपेरंध्रगे।’

Niahsantan yog: कुंडली में सिंह राशि गत गुरु हो, पंचमेश एवं सूर्य की युति हो तथा लग्न एवं पंचम भाव में पापग्रह स्थित हो तो मनुष्य पितृशाप से पुत्रहीन होता है। सूर्य अष्टम भाव में, शनि पंचम भाव में हो तथा सुतेश राहू से युती करता हो तो पितृशाप से पुत्र बाधा उत्पन्न होती है। व्ययेश लग्न में, अष्टमेश पंचम में तथा दशमेश अष्टम भाव में हो तो भी पितृशाप से पुत्र सुख भंग होता है।

Jyotishiya vishleshn: सुतेश सूर्य पापग्रहों से दर्शित होकर त्रिकोण में पापग्रहों के मध्य संस्थित होने पर भी पितृशाप का फल प्राप्त होता है।

‘सुतेरोत्रिकेलग्नेपनीचराशौ विधौपापयुक्तेथवापुत्रनाथे। विधौमन्दरावहारमुक्ते च नूनं भवेन्मानवोमातृशापद्विपुत्र:।।’

Birth Yogas: पंचमेश त्रिक स्थान में, लग्नेश नीचराशिगत तथा चंद्रमा पापग्रह से युक्त हो अथवा पंचमेश होकर चंद्रमा शनि-भौम-राहू तथा सूर्य इन पापग्रहों से युक्त हो तो जातक को मातृ-शाप के फल से पुत्र-सुख में बाधा उत्पन्न होती है। सुतेश चंद्र नीचराशि गत होकर पाप ग्रहों के मध्य  स्थित हो तो अम्बादि मातृशक्ति के शाप से पुत्रोत्पन्न नहीं होता है।

पापग्रह पंचम एवं चतुर्थ भाव में हो अथवा शनि लग्र अष्टम भावगत हो, चतुर्थ भाव में पापग्रह तथा पंचम भावगत चंद्रमा होने पर मातृदोष के कारण पुत्रोत्पति नहीं होती है।

‘सुखेशेकुजेमन्दराहुप्रयुक्ते यदापु पवन्तौ विलग्नेयदावा। सुखेशेष्टमें पुत्रलग्राधि पौधे दरौखारिपेंगेऽसुतीमातृशापात।’

भौम चतुर्थेश होकर शनि-राहू से युक्त होकर, सूर्य-चंद्र लग्न में हों तो मातृशाप के कारण पुत्रोत्सव नहीं आता है। सुखेश अष्टम भावगत हो, पंचमेश लग्नेश दोनों षष्ठभाव में हों तथा दशमेश षष्ठेश लग्न में हो तो मातृशाप के कारण पुत्रसुख प्राप्त नहीं होता।

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‘पापेक्षितेर्केशनिराशिगे वा लग्नेयदाचेतखलखटेवर्गे। वाकनाकांगेचरवोकुजेसुते नरोविपुत्र: कुलदेवदोषात्।’

पापग्रहों से दर्शित सूर्य शनि की राशि में हो तो कुलदेव का दोष संतान प्राप्ति में बाधक होता है। यदि लग्न में पापग्रह का वर्ग हो अथवा कन्या राशि के लग्न में सूर्य संस्थित हो तो भी कुलदेव के दोषवश विपुत्र होने का योग उपस्थित होता है। पापग्रहों से दर्शित लग्न एवं शत्रु ग्रही शनि यदि बुध चंद्र व सूर्य से दृष्ट हो तो पूर्वजादि कुलदेव के दोष से संतानसुख  में बाधा उत्पन्न होती है।

भौम दर्शित राहू पंचम भाव में स्थित होने से सर्प के शाप से पुत्र का अभाव होता है। ‘भृगुसूत्र’  के अनुसार पंचम भावस्थ राहू संतति प्राप्ति में बाधक होता है। यदि सूर्य पंचम भाव में राहू अथवा केतु से युक्त हो तो भी सर्प के शाप का फल उपस्थित होता है।

लग्न के नवांश की राशि सुतभाव में हो तथा शुभग्रहों से वर्जित जितने पापग्रह सुतभाव को देखते हो उनका शांति अनुष्ठान कराना चाहिए। यदि पंचम भाव में केवल राहू प्रतिबंधक हो तो भृगुसूत्रानुसार ‘नागप्रतिष्ठया पुत्रप्राप्ति:’ से निवारण करने का निर्देश है।

‘तन्प्राप्तिधर्ममूला तदनुबुधकवी शंकररस्याभिषेकाच्य चंद्रश्चेत्तद्वदेव त्रिदिवपतिगुरुमंत्रयन्त्रौषधीनाम।’

संतान की प्राप्ति धर्ममूलक है  तथा पुण्योदय से ही प्राप्त की जा सकती है। यदि बुध-चंद्र एवं शुक्र संतान के प्रतिबंधक ग्रह हों तो निवारणार्थ रुद्राष्टध्यायी के एकादश व शतरुद्राभिषेक विधिपूर्वक सम्पन्न कराना चाहिए। यदि गुरु संतान का प्रतिबंध करता हो तो मंत्र-यंत्र व औषध चिकित्सा से लाभ प्राप्त हो सकता है। जैसे-हरिवंश पुराण श्रवण, संतान गोपाल विधान, पुत्रकामेष्टि यज्ञ विधान एवं सूर्य व मंगल जैसे  शास्त्रोक्य यंत्रों का विधिपूर्वक अर्चन करना लाभकारी है।

‘सिद्धया मन्दारसूर्या यदि शिखितमसी तंत्र वंशेशपूजा, कार्याम्रायोक्तरीत्या बुधगुरुनवपा: क्षिप्रमेवात्रसिद्धी:।।’

यदि सूर्य, मंगल, राहू, शनि व केतु संतान के प्रतिबंधक हो तो अपने कुल देवता की शास्त्रोक्त रीति से पूजा कर पितर बाधा शांत करना श्रेयस्कर रहता है।

यदि संतान प्राप्ति में बुध, गुरु व नवमेश बाधक हो तो धार्मिक अनुष्ठान से शीघ्र फल प्राप्त होता है।  यदि इन पर सौम्य ग्रहों की दृष्टि हो तो भी धार्मिक अनुष्ठान फलदायी होते हैं।

Childless Couples: इनके अतिरिक्त दम्पति की बीज कुंडली एवं क्षेत्र कुंडली का सूक्ष्म अध्ययन करके ही आगत निर्णय लेना चाहिए। निवारण से संबंधित सभी अनुष्ठानादि कार्य कुशल दैवज्ञ के निर्देशन में ही सम्पन्न कराना उचित रहता है।

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