Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Apr, 2018 03:01 PM
पिछले जन्मों में हो सकता है, कि तुमने अपने भीतर कुछ धन पैदा किया हो। इस जीवन में तुम या तो उसमें कुछ जोड़ सकते हो या उसे लुटा सकते हो लेकिन निश्चित रूप से उसका कुछ गुण तुम्हारे जीवन में रहेगा। हालांकि अचेतनापूर्वक वह भले ही व्यर्थ हो जाए।
पिछले जन्मों में हो सकता है, कि तुमने अपने भीतर कुछ धन पैदा किया हो। इस जीवन में तुम या तो उसमें कुछ जोड़ सकते हो या उसे लुटा सकते हो लेकिन निश्चित रूप से उसका कुछ गुण तुम्हारे जीवन में रहेगा। हालांकि अचेतनापूर्वक वह भले ही व्यर्थ हो जाए। इसलिए तुम्हारी साधना के कारण हो सकता है कि वह धन भौतिक सुख के रूप में व्यक्त हो, जैसे कि एक अच्छा घर, एक उचित वातावरण या हो सकता है कि तुम्हारे आसपास अच्छे लोग हों।
इन सबके बावजूद हो सकता है कि तुम इनका उपयोग न कर पाओ और बस उसी में संतुष्ट बने रहो। यह एक पूरा चक्र है। क्यों मैं बार-बार कहता हूं कि पूरा खेल सांप और सीढ़ी के खेल की तरह है, वह तुम्हें संतुष्ट बना सकता है और यही कारण है कि तुम सांप से होकर नीचे उतर आते हो। तब जैसे ही दुख आता है, कि तुम फिर से खोजना शुरू करते हो और विकास होता है। तुम इसे व्यर्थ करके पुन: नीचे आ सकते हो।
यह मूर्खों का मार्ग है अपनी ऊर्जा को व्यर्थ करना। लेकिन कोई व्यक्ति जिसमें पर्याप्त विवेक है, उसे अपनी हरेक सांस को भी विकास की ओर एक कदम के रूप में लेना चाहिए। यह बिल्कुल संभव है। जैसा कि उसने बताया कि उसे याद दिलाई गई थी। किसी व्यक्ति को सैंकड़ों बार याद दिलाने के बाद भी अगर वह तब भी नहीं जागता है, अगर वह तब भी अपने सुखों में पड़ा रहता है तो हम क्या कर सकते हैं? वह बर्बाद हो जाएगा। उसे एक बार फिर से दुख भोगना पड़ेगा और तब शायद जाकर वह विकास की तलाश करे।
अगर अंतर लाना है तो वह केवल जागरूकता द्वारा लाया जा सकता है, कोई और तरीका नहीं है। यह जरूरी नहीं कि जागरूकता बस सूखी हुई हो। जब यह प्रेम से भरी होती है, तो जागरूकता फिर कई गुना हो जाती है। प्राय: मानसिक सजगता को जागरूकता समझ लिया जाता है लेकिन जागरूकता मात्र मानसिक सजगता नहीं है, यह एक अपेक्षाकृत बहुत बड़ा आयाम है। जब तुम्हारे भीतर जागरूकता पैदा हो जाती है फिर प्रेम और करुणा स्वाभाविक रूप से आ जाते हैं।