Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Jun, 2021 12:07 PM
महान चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस बैठा था। सामने से सम्राट की सवारी गुजरी। सम्राट उसे देखकर ठहर गया। फिर उसने पूछा, ‘‘तुम कौन हो?’’ कन्फ्यूशियस ने कहा, ‘‘मैं सम्राट हूं।’’ सम्राट चौंका।
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Confucius teachings: महान चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस बैठा था। सामने से सम्राट की सवारी गुजरी। सम्राट उसे देखकर ठहर गया। फिर उसने पूछा, ‘‘तुम कौन हो?’’ कन्फ्यूशियस ने कहा, ‘‘मैं सम्राट हूं।’’ सम्राट चौंका। फिर उसने कहा, ‘‘तुम कैसे सम्राट हो। जंगल में बैठे हो फिर भी अपने को सम्राट कहते हो।’’ इस पर कन्फ्यूशियस ने पूछा, ‘‘तुम कौन हो?’’ सम्राट को इस सवाल का मतलब नहीं समझ में आया। उसने सोचा कि उसके लाव-लश्कर को देखकर ही समझ जाना चाहिए था कि वह कौन है।
फिर भी उसने अनमने भाव से जवाब दिया, ‘‘मैं असली सम्राट हूं। यहां जंगल में बैठकर तुम खुद को सम्राट कहते हो। इस तरह अपने बारे में भ्रम पालना ठीक नहीं, कभी तुम संकट में भी पड़ सकते हो। यह गलतफहमी दूर कर लो।’’
कन्फ्यूशियस ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘सेवक उसे चाहिए जो आलसी होता है। मैं आलसी नहीं हूं इसलिए मेरे साम्राज्य में सेवक की जरूरत नहीं है। सेना उसे चाहिए जिसके शत्रु हों, पर दुनिया में मेरा कोई दुश्मन नहीं इसलिए मेरे साम्राज्य में सेना की भी आवश्यकता नहीं है। धन और वैभव उसे चाहिए जो दरिद्र हो। मैं दरिद्र नहीं, इसलिए मुझे धन-सम्पत्ति की भी जरूरत नहीं है।’’
यह जवाब सुनकर सम्राट का सिर झुक गया।