ज्योतिष से जानें, अचानक कैसे बनते हैं किस्मत खुलने के योग

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Dec, 2019 07:36 AM

connection of astrology and jupiter

वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह को भाग्य का कारक ग्रह माना गया है और नवम भाव भाग्य का भाव है। भाग्य को प्रबल करने में कुंडली के त्रिकोण भाव जिन्हें लग्न, पंचम और नवम के नाम से जाना जाता है,

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वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह को भाग्य का कारक ग्रह माना गया है और नवम भाव भाग्य का भाव है। भाग्य को प्रबल करने में कुंडली के त्रिकोण भाव जिन्हें लग्न, पंचम और नवम के नाम से जाना जाता है, इन तीनों भावों के मध्य 120 अंश का अंतर होता है। इन तीनों त्रिकोणों का संबंध भाग्य को मजबूत करता है तथा प्रत्येक नक्षत्र एक ग्रह द्वारा शासित होता है। 9 ग्रह हैं और उनमें से प्रत्येक ग्रह 3 नक्षत्रों पर शासन करता है। एक ही ग्रह द्वारा शासित नक्षत्र एक-दूसरे से 120 डिग्री या राशि चक्र में एक-दूसरे से त्रिकोण बनाते हैं। उदाहरण के लिए-अश्विनी, मघा और मूला नक्षत्र केतु द्वारा शासित हैं। ये तीनों नक्षत्र अग्नि तत्व राशियों के आरंभ में होते हैं, जो एक-दूसरे से त्रिकोणस्थ होते हैं। जब एक नक्षत्र एक गोचर के ग्रह के साथ सक्रिय होता है तो यह उसी ग्रह द्वारा शासित अन्य दो नक्षत्रों को भी सक्रिय करता है।

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ज्यादातर वैदिक ज्योतिषियों द्वारा माना जाता है कि राहू और केतु दोनों को पंचम और नवम दृष्टि दी गई है। इस प्रकार राहू/केतु दोनों अपनी दृष्टियों से तीनों त्रिकोणों को जोड़ते हैं। यही वजह है कि राहू और केतु निश्चित रूप से जीवन में बड़े बदलाव करने की सामर्थ्य रखते हैं। इनकी स्थिति कई घटनाओं को घटित होने का कारण बनती हैं और भाग्योदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए बृहस्पति और राहू और केतु तीनों ग्रहों की दृष्टि है जो 1, 5, 9 या 120 डिग्री (त्रिकोण) का निर्माण करती हैं। ये सभी बिन्दू एक-दूसरे से त्रिकोण भावों को जोड़ते हुए भाग्योदय के पहलू को मजबूती देते हैं। 

जब भी तीन ग्रह एक-दूसरे से 120 डिग्री होते हैं, तो वे कुंडली के महत्वपूर्ण बिन्दुओं को एक सुंदर भव्यता के साथ जोड़ते हुए भाग्योदय करते हैं। इसके अतिरिक्त यदि ये तीनों ग्रह इस स्थिति में किसी एक ग्रह के स्वामित्व में आने वाले नक्षत्रों में स्थित हों तो भाग्योदय होने के योगों को बल मिलता है।

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अब इन योगों को कुछ कुंडलियों पर लगा कर देखते हैं :
4.4.1997, 15.29 दिल्ली समय, कारोबार शेयर बाजार 
इस दिन जातक को शेयर बाजार में बहुत बड़ा धन-लाभ हुआ, घटना के समय बृहस्पति ग्रह मकर राशि में 21 डिग्री का था, राहू गोचर में कन्या राशि में 4 डिग्री का था। भाग्नेश मंगल लग्न में राहू दूसरे भाव अर्थात धन भाव में तथा गुरु छठे भाव में था गोचर में राहू, गुरु और दशम भाव को देख रहे हैं, तो गुरु भी तीनों अर्थ भावों से संबंध बना रहे हैं, राहू/केतु और गुरु तीनों ग्रह धन भाव को सक्रिय कर एक-दूसरे से 120 अंश पर स्थित हैं ग्रहों की इस स्थिति ने शेयर बाजार में धन अर्जित करने की स्थिति बनाई।

16/11/1991, 15.25 मुम्बई 
घटना: लाटरी में धन प्राप्ति

घटना के समय बृहस्पति सिंह राशि में 17 डिग्री का था और राहू धनु में 17 डिग्री का था। दशम भाव में राहू की स्थिति गुरु छठे भाव में और केतु चतुर्थ में था। चतुर्थेश बुध भाग्य भाव में स्थित था। भाग्येश मंगल अष्टम भाव में स्थित हो अपनी सप्तम दृष्टि से धन भाव को सक्रिय कर रहा था। गुरु और राहू भी धन भाव को सक्रिय कर रहे थे। इस प्रकार द्वितीय, षष्ठ भाव और दशम भाव तीनों ही आपस में जुड़कर त्रिकोण भाव बनाते हुए, 120 अंश की दूरी पर थे। ग्रहों की यह स्थिति अचानक से धन लाभ प्राप्ति का कारण बनी।

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13/12/1991, 10.15 दिल्ली
अचानक से बड़ा धन योग प्राप्त हुआ

इस जातक को इस दिन एक अप्रत्याशित बड़ा धन लाभ हुआ। घटना के दिन गुरु 25 अंश का था, राहू धनु राशि 16 अंश के थे। आय भावेश आय भाव में चंद्र धन भाव में केतु छठे भाव और गुरु धन भाव को सक्रिय कर रहा था। केतु ने दृष्टि से दशम भाव को अर्थात अर्थ भाव को सक्रिय किया, गुरु ने धन भाव को और गुरु ने तीसरे अर्थ भाव अर्थात छठे भाव को सक्रिय किया, इस प्रकार तीनों अर्थ भाव सक्रिय हुए और जातक को बड़ी मात्रा में धन की प्राप्ति हुई।    

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