Edited By Lata,Updated: 14 Jun, 2019 11:56 AM
आज के समय में हर कोई अपने आप में ही इतना व्यस्त है कि दूसरों के बारे में सोचने का व्यक्त तक किसी के पास नहीं है।
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आज के समय में हर कोई अपने आप में ही इतना व्यस्त है कि दूसरों के बारे में सोचने का व्यक्त तक किसी के पास नहीं है। हमारे व्यवहार में स्वभाविकता कम और अभिनय अधिक होता है। कई बार बाहरी दुनिया का तनाव हमारे भीतर तक उतर आता है। हमारा मूल स्वभाव कहीं खो जाता है। हम अपनेआप में नहीं रहते। कई लोग गुस्से का अभिनय करते हैं, दफ्तर में, मित्रों में या सहयोगियों में, लेकिन वो गुस्सा कब खुद उनका स्वभाव बन जाता है वे समझ नहीं पाते।
कई लोग गुस्से का अभिनय करते हैं, दफ्तर में, मित्रों में या सहयोगियों में, लेकिन वो गुस्सा कब खुद उनका स्वभाव बन जाता है वे समझ नहीं पाते। समय गुजरने के साथ ही व्यवहार बदलने लगता है। हमेशा प्रयास करें कि दुनियादारी की बातों में आपका अपना स्वभाव कहीं छूट ना जाए। आप जैसे हैं, अपनेआप को वैसा ही कैसे रखें, इस बात को समझने के लिए थोड़ा ध्यान में उतरना होगा। हम कभी-कभी क्रोध करते हैं लेकिन क्रोध हमारा मूल स्वभाव नहीं है। क्या किया जाए कि बाहरी अभिनय हमारे भीतरी स्वभाव पर हावी ना हो। क्रोध पहले व्यवहार में आता है फिर हमारा स्वभाव बन जाता है। इस क्रोध को अपने स्वभाव में उतरने से कैसे रोका जाए? बाहरी दुनिया को बाहर ही रहने दें। बाहरी दुनिया और भीतरी संसार के बीच थोड़ा अंतर होना चाहिए।
रोज ध्यान जरूर करें यानि थोड़ा सा भी मेडिटेशन हमें नई ऊर्जा से भरता है। हमें अपने आप से मिलने का अवसर देता है।
अपने परिवार के साथ समय बिताएं। नियम बना लें कि आधे घंटे से एक घंटे का समय कम से कम ऐसा निकालेंगे जो पूरी तरह आपके परिवार के लिए हो।
थोड़ा समय खुद के लिए निकालें। एकांत में बैठें। किसी मंदिर या प्राकृतिक स्थान के निकट बैठें। ये आपके लिए सकारात्मक ऊर्जा पाने और खुद का विश्लेषण करने के लिए बहुत उपयोगी होगा।
अपने शौक को जीवित रखें। जो भी आपका रचनात्मक शौक हो, जैसे संगीत सुनना, किताबें, पढ़ना, कोई खेल खेलना, उसके लिए कुछ समय जरूर निकालें, रोज न कर सकें तो सप्ताह में एक या दो बार जरूर करें।