Coronavirus: श्वास संबंधी रोगों को भगाने के लिए आज से शुरु करें ये काम

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Jul, 2020 12:09 PM

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कोरोना वायरस श्वास तंत्र से जुड़ा वायरस है। जिसे माइक्रोस्कोप के माध्यम से ही देखा जा सकता है। सबसे पहले ये संक्रमण जानवरों में देखा गया। फिर तेजी से इसने मानव जाती को अपनी लपेट में ले लिया।

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Coronavirus: कोरोना वायरस श्वास तंत्र से जुड़ा वायरस है। जिसे माइक्रोस्कोप के माध्यम से ही देखा जा सकता है। सबसे पहले ये संक्रमण जानवरों में देखा गया। फिर तेजी से इसने मानव जाती को अपनी लपेट में ले लिया। इसके कहर से बचने के लिए हिंदू वैदिक परंपराओं का पालन करना आरंभ करें। वैज्ञानिक आधारों पर यह सिद्ध हो चुका है कि जो साधक शंख से जुड़े नियमों का पालन करते हुए प्रतिदिन पांच से दस मिनट तक शंख वादन करते हैं, उनकी श्वास की गति अति स्वाभाविक होती है। ऐसे साधक दीर्घजीवी होते हैं। शंख वादन स्त्रियों और पुुरुषों दोनों को करना चाहिए। बंगाल और दक्षिण भारत में शंख वादन की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है जो शंख की दृश्य-अदृश्य शक्तियों के महत्व को ही दर्शाती है। शंख की ध्वनि सुनकर देवी-देवताओं के भी कान खड़े हो जाते हैं। इस ध्वनि की पवित्रता जीवों को जागृत करती है। इससे वनस्पतियां प्रसन्न होती हैं। 

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दक्षिणवर्ती शंख मुश्किल से उपलब्ध होता है। तांत्रिक सिद्धियों के लिए देवत्व गुणों वाले इसी शंख की आवश्यकता पड़ती है। गृहस्थ आश्रमों में रखे जाने वाले शंख भी निर्दोष होने चाहिएं। शंख शिखर सुरक्षित होने पर ही शंख का प्रभाव होता है। भग्न शिखर अथवा भग्न मुख वाला शंख न तो खरीदना चाहिए, न घर में रखना चाहिए। दक्षिणवर्ती शंख तोड़े या बजाए नहीं जाते लेकिन यदि यह श्वेतवर्ती और बजाने योग्य भी हो तो इसे पूजा में रखना शुभ माना जाता है।

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इसकी प्रतिमाओं के समान ही पूजा करनी चाहिए। गंगाजल अथवा शुद्धजल से शंख को पवित्र और स्वच्छ करके ही इसका वादन करना चाहिए। जिस परिवार के लोग शंख वादन करते हैं, वहां श्वास संबंधी रोग नहीं होते। देवताओं का वास होता है।

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पूजा के योग्य सर्वगुणों वाला शंख सहज सुलभ नहीं होता। इसलिए ऐसे शंख की प्राप्ति के लिए मुहूर्त का प्रतिबंध लगाना संभव नहीं है। इसलिए कोई अच्छा शंख किसी भी मुहूर्त में मिले, जातक को प्राप्त कर लेना चाहिए। इसके लिए कोई शुभ दिन चुना जाए तो अच्छा रहता है। रविपुष्प योग अथवा गुरु पुष्पयोग सर्वोत्तम रहता है।

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शंख लाने के बाद उसे किसी थाली अथवा चांदी के बर्तन में रखकर अच्छी तरह स्नान करवाना चाहिए। गंगाजल मिले तो इसके लिए सर्वोत्तम होगा और न मिले तो गाय का कच्चा दूध भी ठीक रहेगा। नए वस्त्र से स्नान करवाए गए शंख को पोंछ कर सफेद चंदन, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप से उसकी विधि-विधान के साथ पूजन करें और भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी से आग्रह करें कि वे शंख में निवास करें। 

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प्रतिदिन पूजा के समय शंख पूजा का यही विधि-विधान अपनाएं। शंख पूजन के समय जाप के लिए निम्नलिखित मंत्रों में से कोई एक मंत्र चुना जा सकता है। 
ॐ श्री लक्ष्मी सहोदराय नम:
ॐ श्री पयोनिधि जाताय नम:
ॐ श्री दक्षिणवत्र्त शंखाय नम:
ॐ  ह्वीं श्री क्लीं श्रीधर करस्थाय, पयोनिधिजाताय, लक्ष्मी सहोदराय, दक्षिणावत्र्त शंखाय नम:
ॐ ह्वीं श्री धर करस्थाय, लक्ष्मीप्रियाय, दक्षिणवत्र्त शंखाय मम चिन्तितं फलं प्राप्तयर्थाय नम:

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शंख की प्राण प्रतिष्ठा के लिए उपरोक्त सभी मंत्र स्वयं सिद्ध हैं। ॐ श्री लक्ष्मी सहोदराय नम: सबसे सरल और प्रथम, प्रभावी मंत्र है। साधक अपनी सामर्थ्य के अनुसार कोई भी मंत्र जप कर शंख के अद्भुत प्रभावों का लाभ उठा सकता है।

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शंख का पूजन विधि- विधानपूर्वक साधक यदि श्रद्धा-भक्ति के साथ करें तो इसका प्रभाव रत्नों के समान ही होता है। दक्षिणवर्ती शंख जिस परिवार में स्थापित रहता है, वहां दरिद्रता नहीं रहती, शांति और समृद्धि का निवास होता है।

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शंख में शुद्ध जल भर कर व्यक्ति, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप, अभिचार, और दुग्रह के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। जादू, टोना, नजर जैसे प्रभावों का इससे नाश होता है। 

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