Coronavirus: नॉन-वेज खाने वाले रहें सावधान !

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Mar, 2020 07:41 AM

coronavirus and nonveg eaters

आज लगभग विश्व भर में कोरोनावायरस वैश्विक महामारी के रुप में फैल गया है। इससे बचने के लिए विभिन्न तरीके और सावधानियां जनहित में जारी किए जा रहे हैं। लोक किंवदंती के अनुसार ये

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Coronavirus News Update: आज लगभग विश्व भर में कोरोनावायरस वैश्विक महामारी के रुप में फैल गया है। इससे बचने के लिए विभिन्न तरीके और सावधानियां जनहित में जारी किए जा रहे हैं। लोक किंवदंती के अनुसार ये भी कहा जा रहा है की नॉन-वेज नहीं खाना चाहिए। सोशल मीडिया पर तो "स्टॉप ईटिंग मीट" और "नो मीट नो कोरोनोवायरस" जैसे रुझानों को देखा जा सकता है।

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मांस क्यों नहीं खाना चाहिए, इसका पहला कारण है कि यह मनुष्य के लिए अप्राकृतिक है। जीभ के चपक पर पानी पीने वाले कुत्ते, बिल्ली, सिंह, व्याघ्र आदि जानवरों के लिए मांस प्राकृतिक भक्ष्य हो सकता है। ईश्वर ने उनके दांत, दाढ़, नाखून तथा आमाशय आदि सभी अंग वैसे ही बनाए हैं परन्तु घूंट-घूंट कर पानी पीने वाले- गाय, भैंस, वानर, मनुष्य आदि जीवों के लिए मांस प्राकृतिक भक्ष्य नहीं, क्योंकि इनके अंग मांसाहारियों के समान नोचने, कुचलने और चीर-फाड़ करने योग्य नहीं बने हैं। यही कारण है कि मनुष्य को छोड़कर अन्य कोई घूंट कर पीने वाला जीव स्वभावत: मांसाहारी नहीं होता है।

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दूसरा कारण यह है कि कोई भी मांसाहारी व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग का सफल पथिक नहीं हो सकता। क्योंकि उसका अंत:करण पशुतामय परमाणुओं द्वारा परिपुष्ट होने के कारण कभी सात्विक नहीं हो सकता। मांस खाने वाला शराब पीएगा ही। शराबी व मांसाहारी व्यभिचारी होगा ही, ये सभी तामसी वस्तुएं हैं वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, जैसा व्यक्ति खाएगा उसके शरीर और मन-मस्तिष्क में वैसे ही विचार उठेंगे। 

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संत लोग भी कहते हैं- जैसा खावे अन्न, वैसे होवे मन जैसा पीये पाणी, वैसी होवे वाणी।

इसलिए अन्यान्य विषयों में पाश्चात्य देश चाहे जितने उन्नत हों परन्तु आध्यात्म विषय में अभी भी वे भारत में किसी सात्विक, साधु-संन्यासी, महापुरुष की शरण में आकर ही शांति प्राप्त करते हैं।

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तीसरा कारण है कि अधिकतर मांस,.सूअर, कुक्कुट (मुर्गी) और मत्स्य, इन तीनों जीवों का खाया जाता है।  सभी जानते हैं कि ये तीनों प्राणी मलभक्षक हैं। ग्राम्य सूअर तो प्रत्यक्ष ही मल-विष्टा खाते हुए देखा जाता है। जल में गिरा मल मछली तत्काल खा जाती है। मुर्गा तो मनुष्य की खंखार के शब्द को सुनकर भागता है और थूक को पृथ्वी पर गिरने से पहले ही चट कर जाता है। ऐसी गंदी, मल-विष्टा से सारभूत सिञ्चित वस्तुओं को खाना मनुष्य के योग्य नहीं है। मांसभक्षी लोग मांस में विटामिन की दुहाई देते हैं तो कल कुछ डाक्टर विष्टा में भी कुछ विशेष प्रकार के विटामिन प्रमाणित कर देंगे तो क्या उसे भी भोज्य-पदार्थ की श्रेणी में लिया जाएगा?

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चौथा कारण- जिस जानवर का मांस आप खा रहे हैं, वह बीमार हो तो उसका जहर उसके पूरे शरीर, रक्त, मांस, मज्जा में होगा। ऐसे मांस को खाने से बोटमालिज्म नामक घातक बीमारी होती है जो गुर्दे पर असर डालती है तथा मनुष्य की मृत्यु का कारण बनती है। भेड़ के मांस से हाईडाटिड नामक खतरनाक प्राणघातक बीमारी होती है। मांस खाने वाले व्यक्तियों के गुर्दे, पाचनतंत्र जल्दी खराब होते हैं, वे पशुओं की तरह जल्दी हांफते हैं। उनको बवासीर, भगंदर एवं गुदा द्वारा खून गिरने की आम शिकायत रहती है।

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इन सबके बावजूद आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि संसार के सारे मांसभक्षी वैज्ञानिक व डाक्टर मिलकर आज तक यह साबित नहीं कर पाए कि क्या ‘मांस व अंडे’ अपने-आप में सम्पूर्ण भोजन हैं? मांस में सर्वाधिक-प्रोटीन होता है, पर अन्य पोषक तत्वों का नितांत अभाव रहता है। जैसे ‘दूध’ को वैज्ञानिकों ने ‘सम्पूर्ण भोजन’ घोषित किया है। क्योंकि दूध में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन के अतिरिक्त फैट, कार्बोहाइड्रेट, ग्लूकोज, एन्जाइम आदि अनेक जीवनदायक पोषक तत्व होते हैं जिनके फलस्वरूप केवल दूध के आधार पर व्यक्ति जीवित रह सकता है। नवजात शिशु एक वर्ष दुग्धाहार करके ही शरीर बनाता है। यदि नवजात शिशु को दूध की जगह रक्त व मांस दिया जाए तो वह मर जाएगा। हमारे पास वैज्ञानिक, व्यावहारिक एवं नैतिक रीति से प्रमाणित सम्पूर्ण सुरक्षित अमृत भोजन (दूध) के होते हुए अपूर्ण, असुरक्षित, दुर्गंधयुक्त प्राणी भोज्य की कोई सार्थकता नजर नहीं आती।

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