दधीचि जयंती कल: धर्म रक्षा हेतु जिन्होंने दान दिए प्राण

Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Aug, 2017 02:15 PM

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मान्यतानुसार ऋषि पंचमी के तीसरे दिन अर्थात भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को दधीचि जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष दधीचि जयंती का पर्व मंगलवार 29 अगस्त को मनाया जाएगा। सनातन धर्म के इतिहास में महर्षि दधीचि जैसा

मान्यतानुसार ऋषि पंचमी के तीसरे दिन अर्थात भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को दधीचि जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष दधीचि जयंती का पर्व मंगलवार 29 अगस्त को मनाया जाएगा। सनातन धर्म के इतिहास में महर्षि दधीचि जैसा कोई दानी उत्पन्न नहीं हुआ है। पौराणिक वृत्तांत के अनुसार, देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र के अभिमान से क्षुब्ध होकर स्वर्ग त्याग दिया था जिसका लाभ उठाकर दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने दैत्यों द्वारा देवलोक पर हमला करवा कर इंद्र से स्वर्ग छीन लिया। ब्रह्मदेव की सलाह पर इंद्र ने महर्षि त्वष्टा के पुत्र ऋषि विश्वरूप से नारायण कवच प्राप्त कर पुन: स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। परंतु दैत्य व देव दोनों ही महर्षि कश्यप की संतान थीं तथा विश्व रूप की माता भी दैत्य थी।

 

अत: दैत्यों के आग्रह पर ऋषि विश्व रूप ने विजय यज्ञ में देव और दैत्यों दोनों की आहुतियां दीं। जिससे नाराज होकर इंद्र ने ऋषि विश्व रूप के तीनों सिर काट दिए जिससे देवों पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा और वे शक्तिविहीन हो गए। अपने पुत्र के वध से बेहद क्रोधित महर्षि त्वष्टा ने अपनी यज्ञ वेदी से पर्वत समान गदा व शंख धारी वृतासुर नामक दैत्य को प्रकट किया। वृतासुर ने महर्षि त्वष्टा की आज्ञा से देवों को मार गिराया व स्वर्ग पर पुन: कब्जा जमा लिया।


पराजित इंद्र श्री हरि की शरण गए जहां उसे ब्रह्म हत्या करने पर फटकारा गया परंतु अभिमंत्रणा पर श्री हरि ने इंद्र को महर्षि दधीचि से सहायता लेने को कहा। श्री हरि ने इंद्र को दधीचि को प्रसन्न कर उनकी अस्थियां प्राप्त कर उनके व्रज बनाकर वृतासुर से युद्ध करने को कहा, क्योंकि दधीचि को शिव द्वारा वज्र अस्थि का वरदान प्राप्त था। इंद्र ने महर्षि दधीचि के आश्रम पहुंच कर उन्हें पूरी व्यथा सुनाई। दधीचि ने परोपकार करते हुए अस्थियों का बलिदान देना स्वीकार किया। इंद्र ने इन अस्थियों का पूजन कर उनसे तेजवान नामक वज्र बनाकर वृतासुर का अंत किया। 


दधीचि के देह त्याग के बाद उनकी गर्भवती पत्नी ने सती बनने से पूर्व अपना गर्भ देवगणों को सौंप दिया। गभस्तिनी के गर्भ का पालन देववृक्ष अश्वत्थ अर्थात पीपल ने किया। उस शिशु का पोषण पीपल द्वारा उसके पत्ते खाकर हुआ, अत: वह शिशु पिप्पलाद कहलाया।
    

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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