Dattatreya Jayanti 2020: यहां अनुसूया देवी ने त्रिदेव को 6 माह का शिशु बनाया था

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Dec, 2020 10:40 AM

dattatreya jayanti

बर्फ से ढंके हुए ऊंचे-ऊंचे पर्वत शिखर, कलकल-छलछल करते हुए झरने, उछलती-कूदती नदियां तथा इन सभी से बढ़ कर पांच-प्रयाग एवं विश्वप्रसिद्ध गंगा-यमुना का उद्गम स्थान उत्तर प्रदेश का गढ़वाल क्षेत्र।

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2020 Dattatreya Jayanti: बर्फ से ढंके हुए ऊंचे-ऊंचे पर्वत शिखर, कलकल-छलछल करते हुए झरने, उछलती-कूदती नदियां तथा इन सभी से बढ़ कर पांच-प्रयाग एवं विश्वप्रसिद्ध गंगा-यमुना का उद्गम स्थान उत्तर प्रदेश का गढ़वाल क्षेत्र। कोई ईश्वरीय शक्ति या ऋषि-मुनियों का वरदान ही इस धरती का निर्माण करने में सहायक रहा होगा। वैसे तो संपूर्ण गढ़वाल ही पर्यटन क्षेत्र है मगर कुछ स्थान अपनी परम्परा के लिए खास महत्वपूर्ण हैं। इन्हीं महत्वपूर्ण स्थानों में से चमोली जनपद में स्थित सती माता अनुसूया देवी का मन्दिर विशेष माना जाता है।

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Where is Maha Sati Anusuya temple: समुद्र तल से 5000 फुट की ऊंचाई पर बसा हुआ यात्रियों के दर्शनों के लिए साल भर खुला रहने वाला माता अनुसूया का यह एकमात्र मन्दिर है जो मंडल नामक बस स्टेशन से केवल 5 किलोमीटर पैदल पहाड़ी मार्ग तय करने के उपरान्त समतल भूमि पर अनुसूया गांव में सुशोभित है। मन्दिर तो युगों पुराना है लेकिन गुरु शंकराचार्य जी ने इसका पुनरुद्धार किया। समय गुजरता गया और मन्दिर को विशाल रूप मिलता गया।

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What does Sati Anasuya mean: तप एवं सत की स्वामिनी, सोलह शृंगारों से परिपूर्ण मां अनुसूया की दिव्य मूर्त, घंटों का कर्णप्रिय स्वर, आकाश तक गूंजती हुई शंखों की ध्वनि, अमर ज्योति के समान सदा जलता रहने वाला दीया तथा प्रात:काल एवं सन्ध्या समय की पूजा-आराधना समस्त प्राणीजन को मुग्ध कर देती है। पत्थर की शिला पर बनी सती अनुसूया की जगमगाती हुई मूर्ति की कुदरती उत्पत्ति सतोपंथ में हुई थी।

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Sati Anasuya Story: पौराणिक गाथाओं के अनुसार आज से युगों पहले सती अनुसूया अपने पति आत्रेय मुनि के साथ हिमखंड के इस निर्जन स्थान पर पहुंचीं। चूंकि ऋषि ऐसी तपस्या में लीन होना चाहते थे जिस पर प्राणी मात्र से लेकर परमेश्वर तक किसी की भी दृष्टि न पड़े इसलिए उन्होंने सफल तप प्राप्ति की कामना से इस जंगल को चुना। ऋषि पत्नी अनुसूया देवी अपने पति का साथ कभी नहीं छोड़ती थीं और उनके साथ-साथ चल पड़ी। इस दुर्गम भूमि पर वर्षों तपस्या करके पति-पत्नी ने युग-युगांतर को धन्य किया।

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Dattatreya Jayanti story: यह वही ऐतिहासिक पावन स्थल है जहां पर अनुसूया देवी ने अपने सतीत्व के बल पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश को छ:-छ: माह के शिशु बना दिया था। चूंकि ऋषि आत्रेय के तप और ऋषि पत्नी के सत से इन्द्रासन तक हिलने लग गया, तब ऋषि पत्नी अनुसूया की परीक्षा लेने के लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश मृत्युलोक में योगी रूप धारण करके अवतरित हुए तथा मां अनुसूया से भिक्षा के बदले भोजन करने की इच्छा व्यक्त की। साथ में यह शर्त भी रखी कि आप हमें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएं।

Datta Jayanti 2020 Utsav: मां अनुसूया ने कुछ देर सोच-विचारने के पश्चात् अपनी कुटिया में पधारे योगियों से बैठने का आग्रह किया। ऋषि आत्रेय जोकि कठोर तपस्या में लीन थे, के कमंडल से अन्जलि भर पवित्र जल लिया तथा तीनों योगियों पर फैंक दिया। पानी के छींटे पड़ते ही तीनों छ:-छ: महीने के रोते-बिलखते हुए बच्चे बन गए। फिर तो माता अनुसूया ने उनकी इच्छा अनुसार निर्वस्त्र होकर उन्हें अपनी गोद में बिठाकर भोजन करा दिया।

Why is Dattatreya Jayanti celebrated: यद्यपि सती अनुसूया के सत और धर्म का संसार भर में कोई विकल्प नहीं लेकिन इस भूभाग की प्राकृतिक सुन्दरता का भी कोई उदाहरण नहीं है। बारहों महीने मदमस्त यौवन में लहराती हरियाली और उसमें हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती हुई विभिन्न पक्षियों की मधुर आवाजें मन मोह लेती हैं। चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे वृक्षों वाले घने जंगलों में पशु-पक्षी विचरण करते हुए नजर आते हैं। जंगली फूलों की खुशबू से मन प्रफुल्लित हो जाता है तथा चांदी की चादर ओढ़े हुए दूर-दूर नजर आती बर्फ़ जैसी सफ़ेद पर्वत शृंखला का दूधिया रंग चांदनी रातों में और भी खिल जाता है। यहां का कुदरती, करिश्मा देखकर लगता है मानो प्रकृति ने स्वर्ग की सुन्दरता को चुरा कर अपने दामन में समेट लिया हो।

चमोली में स्थित अनुसूया मन्दिर से 5 किलोमीटर की दूरी पर आत्रेय मुनि का आश्रम है। अरण्य में स्थित इस निर्जन स्थल पर केवल दिन के समय ही जाया जाता है। रात्रि में यहां पहुंच पाना सम्भव नहीं। आत्रेय आश्रम कोई साधारण आश्रम नहीं बल्कि चट्टान के अंदर एक गुफा है और गुफा के ठीक नीचे गहरी झील है जो अमृत कुंड के नाम से जानी जाती है। ठीक ऊपर से लगभग 25 से 30 मीटर की ऊंचाई से गिरता हुआ झरना है जिसे अमृत धारा कहते हैं।

दुर्गम पहाड़ी की ऊंची चट्टान से गिरने वाला यह विशाल जलप्रपात नि:सन्देह एक अद्भुत दृश्य है। चूंकि आत्रेय आश्रम झील और गिरते झरने के मध्य में पहाड़ी के अन्दर स्थित है इसलिए यहां तक पहुंचने के लिए लोहे की लंबी-लंबी जंजीरों की सहायता ली जाती है जो ऊपर से नीचे की ओर लटकाई गई हैं। ऊपर पहुंचते ही एक सुरंगनुमा गुफा है। यहां पर यात्रियों को सीधे लेट कर पेट के बल आगे खिसकना पड़ता है और इसके तुरन्त बाद दर्शन होते हैं आत्रेय मुनि आश्रम के। यहीं पर ऋषि आत्रेय ने ध्यानमग्न होकर वर्षों तक कठोर तपस्या की थी।

वैसे तो इस जगह पर 4-5 साल के बच्चे तक भी पहुंच जाते हैं। हां, अगर कोई नहीं जाना चाहे, तब भी इन रोमांचक नजारों का भरपूर आनंद झील के किनारे बैठ कर भी लिया जा सकता है।

 Datta Jayanti: कहा जाता है कि आज से युगों पूर्व जब ऋषि आत्रेय तप स्थल की तलाश में निकले थे तो हरिद्वार में उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से इस दुर्लभ स्थान को देखा था। फिर वे पत्नी अनुसूया के साथ ऊबड़-खाबड़ मार्ग को तय करते हुए यहां पहुंचे। इस आश्रम में पत्थर की शिला पर बनी ऋषि जी की अकेली प्रतिमा है। दोपहर के समय जगमगाते सूर्य की किरणें अमृत कुंड पर पडऩे के कारण अमृत धारा यानी झरने पर इन्द्र धनुष लगती हैं जिसकी लौ से आत्रेय मुनि की मूर्ति चमकने लगती है। इन्द्रधनुषी रंगों से चमचमाती यह प्रतिमा इस बात का एहसास दिलाती है मानो उनकी आंखों से दिव्यदृष्टि आज भी सम्पूर्ण संसार को योग की शिक्षा दे रही है।

Birthday of Hindu God Dattatreya: अनुसूया मन्दिर की रचना जगद्गुरु शंकराचार्य जी ने की एवं उसकी भरपूर ढंग से नक्काशी भी की लेकिन आत्रेय आश्रम को उन्होंने भी वैसे का वैसा ही रखा। शायद प्रकृति की इस महान धरोहर के साथ जगद्गुरु शंकराचार्य जी ने भी छेड़छाड़ उचित नहीं समझी। जहां कुदरत ने इस स्थल को अपने हाथों से इतना संवारा है वहीं सरकारी तौर पर यहां कोई विकास नहीं हुआ। भले ही अनुसूया क्षेत्र का प्राकृतिक सौन्दर्य दिन-प्रतिदिन सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है, फिर भी यात्रियों को 5 किलोमीटर पैदल मार्ग चलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जबकि मंडल से अनुसूया तक पहुंचने के लिए जंगल के रास्ते मोटर मार्ग आसानी से बनाया जा सकता है।

What is the significance of Dattatreya Jayanti: चाहे गर्मी की धूप हो या सर्दियों का हिमपात, सती अनुसूया के कपाट अपने श्रद्धालुओं के लिए हमेशा खुले रहते हैं। मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा को यहां पर विशेष पर्व का दिन होता है। इसी दिन भगवान दतात्रेय मां अनुसूया के गर्भ से पैदा हुए थे। इस मन्दिर में जहां सन्तान प्राप्ति की कामना के लिए दंपति मां के द्वार पर अपने भविष्य की आशा लिए पहुंचते हैं वहीं पर्यटक अपने भरपूर मनोरंजन तथा अनुसूया मंदिर का प्राकृतिक सौंदर्य देखने के लिए आते हैं।

 

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