आपको भी है किसी मार्गदर्शक की तलाश, मानें श्रीकृष्ण की ये बात

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Dec, 2020 11:44 PM

definition of guidance

उचित मार्गदर्शन के अभाव में सदा ही मनुष्य पथभ्रष्ट होता रहा है। मन निर्मल जल की भांति होता है, चाहे तो इसमें सद्विचारों का अमृत मिला दें अथवा इसे विषैले विचारों से भर दें। मनुष्य के जीवन में इन

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Definition of guidance: उचित मार्गदर्शन के अभाव में सदा ही मनुष्य पथभ्रष्ट होता रहा है। मन निर्मल जल की भांति होता है, चाहे तो इसमें सद्विचारों का अमृत मिला दें अथवा इसे विषैले विचारों से भर दें। मनुष्य के जीवन में इन दोनों का समावेश होता है। ऐसे मनुष्य का भाग्य प्रबल माना जाएगा जिसे सद्गुण सम्पन्न ज्ञानी पुरुषों का सान्निध्य प्राप्त होता है। 

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दुर्भाग्यशाली होते हैं वे लोग जो सद्गुण सम्पन्न महापुरुषों का तिरस्कार करते हैं। महाभारत में वर्णित अनेक प्रसंगों में धौम्य ऋषि जिन्हें पांडवों ने अपने पुरोहित के रूप में स्वीकार किया था, पांडवों के वनवास काल में उनके साथ रहे जिससे पांडव वन में भी उनसे धर्म का उचित मार्गदर्शन प्राप्त करते रहे।

इस कालखंड में धौम्य ऋषि ने पांडवों के सभी वैदिक कर्मानुष्ठान एवं यज्ञानुष्ठान सम्पन्न करवाए। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ से लेकर राज्याभिषेक तक उनके द्वारा सम्पन्न कराए गए तथा उनके द्वारा राजधर्म का उपदेश दिया गया।

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चंद्रगुप्त मौर्य को भी महान विद्वान चाणक्य के मार्गदर्शन में भारत का सम्राट बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। चाणक्य ने वैदिक ज्ञान पर आधारित सिद्धांतों से चंद्रगुप्त मौर्य के मन और बुद्धि को पोषित किया जिससे वह एक कुशल प्रशासक बना। ये तथ्य पढऩे और सुनने में सामान्य लगते हैं परंतु वास्तविकता यह है कि इनसे भारतीय वैदिक संस्कृति गौरवान्वित हुई है। गुरु हो, कुलगुरु हो अथवा मार्गदर्शक, अगर उनका अनुगामी कर्तव्यनिष्ठा से इनकी आज्ञा का पालन करे तो अवश्य ही ऐसे पथ प्रदर्शक की प्रतिष्ठा एवं गरिमा बढ़ती है।

ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्र ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ से रघुकुल का पुरोहित बनने का आग्रह किया। सर्वप्रथम वशिष्ठ जी ने इस हेतु अपनी सहमति प्रदान नहीं की लेकिन जब ब्रह्मा जी ने ऋषि वशिष्ठ जी को यह रहस्य बताया कि रघुकुल में स्वयं परब्रह्म श्रीमन नारायण का श्री राम जी के रूप में अवतरण होगा तो वशिष्ठ जी सहर्ष तैयार हो गए। 

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कुलगुरु के रूप में जो प्रतिष्ठा ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी को प्राप्त हुई इसके साक्षी हमारे धर्म ग्रंथ हैं। आत्मोद्धार, समाज कल्याण एवं राष्ट्रहित के विषयों में समन्वय स्थापित करके मार्गदर्शन करने वाला ही वास्तविक मार्गदर्शक होता है। स्वयं का हित सोच कर स्वार्थ बुद्धि से युक्त होकर किया गया मार्गदर्शन अनिष्टकारी ही होता है।

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विदुर जैसे सच्चे मार्गदर्शक की अवहेलना कर धृतराष्ट्र ने अपने समूह वंश का नाश करवा लिया। कोई भी व्यक्ति समाज अथवा राष्ट्र सच्चे एवं कल्याणप्रद मार्गदर्शन के बगैर आगे नहीं बढ़ सकता। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी ने पग-पग पर ऋषियों-मुनियों से धर्म युक्त कर्तव्य मार्ग पर चलने हेतु सदैव मार्गदर्शन प्राप्त किया। 

जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं के अधीन होते हैं, जो धर्म-अधर्म न्याय-अन्याय, नीति-अनीति का विचार न करके समाज के हित की परवाह न करते हुए, जन भावनाओं का अनादर करते हैं ऐसे व्यक्ति न तो सद्गुण सम्पन्न महापुरुषों के मार्गदर्शन के अधिकारी होते हैं और न ही वे अधोगति में ले जाने वाली अनिष्टकारी विचारधारा से मुक्त हो पाते हैं। सच्चा मार्गदर्शक ही सच्चा हितैषी होता है। कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि पर कर्तव्य के विषय में भ्रमित अर्जुन के सच्चे मार्गदर्शक बने भगवान श्री कृष्ण ऐसा मार्गदर्शन अनंत काल तक सम्पूर्ण जगत का कल्याणप्रद मार्गदर्शन करता रहेगा जिसे सम्पूर्ण विश्व आज श्रीमद्भगवद गीता जी के नाम से जानता है। सच्चा मार्गदर्शक वही है जो स्वयं इच्छा, भय और क्रोध से मुक्त हो तथा धर्म, न्याय और नीति से युक्त होकर मार्गदर्शन करे।

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