Kundli Tv- देव दीपावली: क्या सच में इस दिन आकाश छोड़ धरती पर आते हैं देवता

Edited By Jyoti,Updated: 22 Nov, 2018 12:17 PM

dev deepawali 2018

भगवान शंकर की नगरी काशी में वैसे तो पूरे साल तीर्थयात्रियों का सैलाब उमड़ा रहता है परंतु कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन तो यहां की रौनक देखते ही बनती है।

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भगवान शंकर की नगरी काशी में वैसे तो पूरे साल तीर्थयात्रियों का सैलाब उमड़ा रहता है परंतु कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन तो यहां की रौनक देखते ही बनती है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस दिन को देव दिवाली के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि देव दीपावली के दिन असंख्य दीपकों की रोशनी से नहाया हुआ काशी घाट आसमान में टिमटिमाते तारों से नज़र आते हैं। कार्तिक पूर्णिमा की शाम जब लाखों दीए काशी की उत्तरवाहिनी गंगा किनारे पर एक साथ जलते हैं, तो रोशनी से सराबोर गंगा घाट देवलोक के समान प्रतीत होता है। काशी के इस खूबसूरत नज़ारे को देखने लोग दूर-दूर से आते हैं।
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पौराणिक मान्यता
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा से कुछ दिन पहले देवउठनी एकादशी पर नारायण अपने 4 महीने की निद्रा से जागते हैं। जिसकी खुशी में सभी देवता स्वर्ग से उतरकर बनारस के घाटों पर दीपों का उत्सव मनाते हैं। इसके अलावा एक मान्यता ये भी प्रचलित है कि इस दिन भगवान शंकर ने त्रिपुर नाम के असुर का वध करके उसके दुष्टों से काशी को मुक्त कराया था। जिसके बाद देवताओं ने इसी कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने सेनापति कार्तिकेय के साथ भगवान शंकर की महाआरती की और इस पावन नगरी को दीप मालाओं कर सजाया था।
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कहा जाता है कि 1986 में काशी नरेश डा. विभूति नारायण सिंह ने देश की सांस्कृतिक राजधानी कहलाने वाली पावन नगरी में देव दीपावली को भव्यता के साथ मनाना शुरु किया गया था जिसके बाद से यह लोकोत्सव जनोत्सव में तब्दील हो गया। कहते हैं कि दीपावली की शाम जब गंगा के अर्धचंद्राकार घाटों पर हजारों-लाखों दिए एकसाथ जलते हैं तो यह पूरा क्षेत्र इनकी रोशनी से जगमगा उठता है। 
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देवताओं का महापर्व
एेसी मान्यता है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ तो सूर्य की पहली किरण इसी पावन काशी नगरी की धरती पर पड़ी थी। परंपराओं और संस्कृतियों से रची-बसी काशी की देश दुनिया में पहचान बाबा विश्वनाथ, गंगा और उसके पावन घाटों से है। यहां के लोगों की सुबह हर-हर गंगे के साथ शुरू होती है तो शाम उसी मोक्षदायिनी गंगा के तट पर प्रतिदिन होने वाली आरती जय मां गंगे के साथ खत्म होती है। श्रावण में शिवपूजन और गंगा तीरे होने वाली शाम की आरती के बाद यदि कोई पर्व लोगों को इस शहर की ओर आकर्षित करता है तो वह देव दीपावली ही है। बता दें कि काशी के घाटों में मनाया जाने वाला इस देव दीपावली पर्व की लोकप्रियता आज देश-विदेश तक पहुंच चुकी है।
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