Dev Diwali 2020:क्या काशी में ही मनाया जाता है देव दिवाली का पर्व?

Edited By Jyoti,Updated: 17 Nov, 2020 03:48 PM

dev diwali 2020

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ प्रत्येक वर्ष भगवान शिव की नगरी काशी में देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दीपावली के ठीक 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है,

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
प्रत्येक वर्ष भगवान शिव की नगरी काशी में देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दीपावली के ठीक 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो इस साल 29 नवंबर को मनाया जाएगा। मगर आज भी ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें ये नहीं पता कि आखिर देव दिवाली क्यों मनाई जाती है और खासतौर पर इस काशी में मनाने का क्या कारण है? तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि कि किस कारण देवी दिवाली का पर्व काशी में मनाया जाता है। 
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प्रचलित धार्मिक मान्यताएं के अनुसार इस दिन यानि कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन सनातन धर्म के सभी देवी-देवता खुशियां मनाने धरती पर आते हैं, जिसके उपलक्ष्य में बनारक के घाटों पर दीप जलाए जाते हैं। मगर ऐसा केवल काशी में ही क्यों किया जाता है? 

इस सवाल का जवाब जानने के लिए पढ़ें आगे दी गई जानकारी- 
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा से कुछ दिन पहले देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु 4 महीने के बाद अपनी निद्रा से जागते हैं। जिसकी खुशी में सभी देवता स्वर्ग से उतरकर बनारस के घाटों पर दीपों का उत्सव मनाते हैं। ऐसी इससे जुड़ी अन्य मान्यता के अनुसार दीपावली पर देवी लक्ष्मी अपने प्रभु भगवान विष्णु से पहले जाग जाती हैं, जिस बाद दीपावली के 15वें दिन कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवताओं की दीपावली मनाई जाती है। 
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तो वहीं अन्य मान्यताओं के मुताबिक तीनों लोकों में त्रिपुरासुर राक्षस का आंतक था। तब देवों के देव महादेव शिव शंभू ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी में पहुंच कर त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था और समस्त देवी-देवताओं आदि को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। जिसके बाद सभी देवताओं ने प्रसन्न होकर सभी देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था। 

बताया जाता है देव दिवाली की परंपरा सबसे पहले बनारस के पंचगंगा घाट पर 1915 में हज़ारों की संख्या में दिए जलाकर की गई थी। जिसके बाद से बनारस में भव्य तरीके से घाटों पर दीये सजाए जाते हैं। बताते चलें कि बनारस का यह उत्सव लगभग 3 दशक पहले कुछ उत्साही लोगों के प्रयासों से शुरू हुआ। नारायण गुरु नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता ने युवाओं की टोली बनाकर कुछ घाटों से इसकी शुरूआत की और फिर धीरे-धीरे दूसरे घाटों तक यह फैलता हुआ करीब एक दशक पूर्व अपने ऐसे भव्य रूप में आ चुका है।
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