Edited By Jyoti,Updated: 08 Nov, 2019 08:29 AM
आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानि 8 नवंबर दिन शुक्रवार को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाएगा।
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आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानि 8 नवंबर दिन शुक्रवार को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। मान्यता है हिंदू धर्म के समस्त त्यौहारों व पर्वों की तरह इस दिन का नाम भी शामिल है। इसका कारण कारण श्री हरि भगवान विष्णु जी का इस दिन अपने चार महीने की निद्रा से जागना। पौराणिक कथाओं के अनुसार चार महीने पूर्व आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं जिससे वे आज के दिन यानि देव ग्यारस तिथि के दिन जागते हैं।
शास्त्रों में वर्णन के अनुसार इस दिन आंवड़े के पेड़ की पूजा व उसके नीचे बैठकर भोजन करने का अधिक महत्व माना जाता है। इसके अलावा इस दिन इससे जुड़ी कथा सुनने व पढ़ने वाले व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। यानि श्री हरि के चरणों में जगह मिलती है। तो आइए जानते हैं क्या है ये कथा-
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथाओं के अनुसार प्रचीन काल में एक राजा के राज्य में एकादशी के दिन सभी लोग व्रत रखते थे। राज्य के नियमों के मुताबिक वहां किसी को इस दौरान अन्न देने तक की मनाही थी। एक दिन उस राज्य में अन्य राज्य का एक व्यक्ति राजा के दरबार में नौकरी मांगने आया। तब राजा ने कहा कि उसे नौकरी तो मिलेगी परंतु इस शर्त पर की एकादशी के दिन उसे अन्न नहीं मिलेगा।
नौकरी के लालच में उसने शर्त मान ली। समस्त राज्य की तरह उसने भी एकादशी के दिन फलाहार किया परंतु उसकी भूख नहीं मिटी। तब उसने राजा से अन्न की मांग की और कहां कि केवल फल से उसकी भूख नहीं मिटेगी, वह भूख के मारे मर जाएगा।
तब राजा ने उसे उसकी शर्त याद दिलवाई लेकिन फिर भी वो नहीं माना। तब राजा ने उसे चावल, दाल, आटा आदि दिलाया। वह रोज़ की तरह नदी में स्नान करने के बाद भोजन बनाने लगा। खाने के समय उसने एक थाली भोजन निकाला और ईश्वर को भोजन के लिए आमंत्रित किया। उसके निमंत्रण पर भगवान विष्णु पीताम्बर में वहां आए और भोजन किया। भोजन के पश्चात वे वहां से चले गए। इसके बाद वह व्यक्ति अपने काम पर चला गया।
दूसरी एकादशी के दिन उसने राजा से कहा कि उसे खाने के लिए दोगुना अनाज दिया जाए। इस पर राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि पिछली बार वह भूखा रह गया था। उसका भोजन भगवान कर लिए थे। ऐसे में उतने सामान में दोनों का पेट नहीं भर पाया।
ये सनुकर राजा आश्चर्य में पड़ गया और उसे उस व्यक्ति के बात पर विश्वास नहीं हुआ। तो व्यक्ति ने राजा सको अपने साथ चलने को कहा। एकादशी के दिन नदी में स्नान करने के बाद उसने भोजन बनाया, फिर एक थाल में खाना निकालकर भगवान को बुलाने लगा, लेकिन वे नहीं आए। ऐसा करते हुए सुबह से शाम हो गई। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर सबकुछ देख रहा था। अंत में उसने कहा कि भगवान आप नहीं आएंगे तो नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा।
भगवान को न आता देखकर वह नदी की ओर जाने लगा। तब भगवान प्रकट हुए और उसे ऐसा न करने को कहा। इसके बाद भगवान ने उस व्यक्ति के हाथों से बने भोजन को ग्रहण किया। फिर वे अपने इस परम भक्त को साथ लेकर अपने धाम चले गए।
इस सारे दृश्य को देखने के बाद राजा को इस बात का ज्ञान हो चुका था कि आडम्बर और दिखावे से कुछ नहीं होता। इसके विपरीत अगर सच्चे मन से ईश्वर का ध्यान या उन्हें याद किया जाए तो वे दर्शन देते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।