देवउठनी एकादशी 2020: शालिग्राम और तुलसी के विवाह से जुड़ी ये कथा जानते हैं आप?

Edited By Jyoti,Updated: 19 Nov, 2020 06:50 PM

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यूं तो हर मास में एकादशी का व्रत पड़ता है, परंतु कार्तिक मास की एकादशी तिथियां खास मानी जाती हैं। क्योंकि इस मास में आने वाली देवउठनी एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु अपने 4 माह की निद्रा से जागते हैं।

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यूं तो हर मास में एकादशी का व्रत पड़ता है, परंतु कार्तिक मास की एकादशी तिथियां खास मानी जाती हैं। क्योंकि इस मास में आने वाली देवउठनी एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु अपने 4 माह की निद्रा से जागते हैं। जो इस बार 25 नवंबर को दिन बुधवार को पड़ रही है। शास्त्रों में इसे देवोत्थन एकादशी व देवोत्थन प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार इस दिन से 4 मास में रुके हुए सभी धार्मिक कार्य दोबारा से आरंभ हो जाते हैं। तो वहीं इस दिन से जुड़ी एक अन्य कथा प्रचलित हैं जिसके अनुसार इस दिन तुलसी माता और भगवान शालिग्राम का विवाह हुआ था। जिस कारण सनातन धर्म से संबंध रखने वाले लगभग लोग इस दिन इनकी पूजा के साथ-साथ घर व मंदिरों में तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं। मगर क्यों इस दिन इनकी शादी की जाती है, इस बारे में आज लोगों को नहीं पता। आइए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर इस दिन इनका विवाह क्यों संपन्न होता है। 
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धार्मिक शास्त्रों आदि में वर्णित है कि प्राचीन काल में भगवान विष्णु की वृंदा नामक अनन्य भक्त थी, जो जलंधर नामक राक्षस की पत्नी थी। जलंधर के अत्याचारों से सभी उद्वविग्न थे। जब देवों और जलंधर के बीच युद्ध हुआ तो वृंदा के सतीत्व के कारण उसे मारना असंभव हो गया। जिस कारण सभी देवताओं ने श्री हरि विष्णु जी से सहायता मांगी। 

समस्त देवताओं को जलंधर से छुटकारा दिलाने के लिए विष्णु जी जलंधर का रूप धारण करके वृंदा के समक्ष गए। जलंधर के रूप में भगवान नारायण को अपना पति समझकर वृंदा पूजा से उठ गई, जिस कारण उनका व्रत टूट गया। उसी इसी भूल की वजह से युद्ध में जलंधर की मृत्यु हो गई। 

परंतु जब वृंदा को इस बात का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु से कहा की हे! नारायण मैनें जीवनभर आ पही की भक्ति की, फिर भी आपने मेरे साथ ऐसा छल क्यों किया? 

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मगर विष्णु जी के पास वृंदा के इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था। वे चुपचाप खड़े होकर सुनते रहे तथा वृंदा की किसी भी बात का कोई उत्तर नहीं दिया।  भगवान विष्णु की तरफ़ से कोई उत्तर न पाने के कारण  वृंदा ने क्रोधित होकर कहा कि आपने मेरे साथ पाषाण की तरह व्यव्हार किया है, जाइए आप भी पाषाण के हो जाएं। कथाओं के अनुसार वृंदा द्वारा दिए गए श्राप के कारण श्री हरि विष्णु पत्थर के बन गए और सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा।  जिसके बाद तब सभी देवों ने वृंदा से प्रार्थना की, कि उन्हें क्षमा कर दें। परंतु स्वयं सती हो गई। 
ऐसी कथाएं हैं कि उनकी राख से एक पौधा उत्पन्न हुआ जो तुलसी कहलाया। 

चूंकि भगवान विष्णु अपने द्वारा किए गए छल के कारण पश्चाताप में थे। इसलिए उन्होंने अपने एक स्वरुप को पत्थर का कर दिया। और कहा कि आज से मेरी पूजा तुलसी दल के बिना अधूरी मानी जाएगी। जिसके बाद वृंदा का मान रखते हुए सभी देवताओं ने उनका विवाह पत्थर स्वरुप विष्णु जी से करवा दिया। यही कारण है कि आज के समय में तुलसी और शालीग्राम का विवाह किया जाता है। 
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