भगवान धन्वंतरि से जुड़े ये धार्मिक तथ्य शर्तिया नहीं जानते होंगे आप

Edited By Jyoti,Updated: 29 Oct, 2021 07:08 PM

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अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको लगातार कार्तिक मास में पड़ने वाले धनतेरस, दिवाली आदि तमाम पर्व से जुड़ी जानकारी दे रहे हैं। इसी कड़ी में अब हम आपको जानकारी देने जा रहे हैं धनतेरस

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अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको लगातार कार्तिक मास में पड़ने वाले धनतेरस, दिवाली आदि तमाम पर्व से जुड़ी जानकारी दे रहे हैं। इसी कड़ी में अब हम आपको जानकारी देने जा रहे हैं धनतेरस पर्व के देवता भगवान धन्वंतरि से जुड़ी। धार्मिक शास्त्रों में आयुर्वेद का जन्मदाता और देवताओं का चिकित्सक माना गया है। इसके अतिरिक्त अन्य धार्मिक ग्रंथों में भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से बार-बार तार धन्वंतरि देवता का माना जाता है। कहा जाता है कि कालांतर में धनवंतरी नाम से एक नहीं बल्कि तीन प्रसिद्ध देव हुए हैं। तो आइए जानते हैं इन तीनों से जुड़ी संक्षिप्त जानकारी।


कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। यह समुद्र में से अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे जिसके लिए देवताओं और असुरों में भीषण संग्राम हुआ था। समुद्र मंथन की कथा श्रीमद् भागवत पुराण, महाभारत, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण आदि कई अन्य पुराणों में पढ़ने को मिलती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार काशी के राजवंश में धन नाम के एक राजा ने कड़ी तपस्या उपासना करते अज्ज देवता को प्रसन्न किया था और उनसे वरदान स्वरूप धनवंतरी पुत्र की प्राप्ति की थी पूर्ण ब्रह्म और विष्णु पुराण में इस कथा का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है समुद्र मंथन से उत्पन्न धनवंतरी का दूसरा जन्म था। काशी नगरी के संस्थापक काश के पुत्र थे धन्व। काशी वंश परंपरा में 2 वंश परंपराएं मिलती हैं।

हरिवंश पुराण के अनुसार काश से दीर्घतपा, दीर्घतपा से धन्व, धन्वे से धनवंतरि, धनवंतरी से केतुमान, केतुमान से भीमरथ तथा भीमरथ से दिवोदास हुए। विष्णु पुराण की माने तो काश से काशेय, काशेय से राष्ट्र, राष्ट्र से दीर्घतपा, दीर्घतपा से धन्वंतरि,धन्वंतरि से केतुमान, केतुमान से भीमरथ तथा भीमरथ से दिवोदास हुए।

एक अन्य कथा के अनुसार एक समय गालव ऋषि प्यास से व्याकुल हो वन में भटकर रहे थे तो उस समय कहीं से घड़े में पानी लेकर जा रही वीरभद्रा नाम की एक कन्या ने उनकी प्यास बुझायी। जिससे प्रसन्न होकर गालव ऋषि ने आशीर्वाद दिया कि तुम योग्य पुत्र की मां बनोगी। परंतु जब वीरभद्रा ने कहा कि वे तो एक वेश्‍या है तो ऋषि उसे लेकर आश्रम गए और उन्होंने वहां कुश की पुष्पाकृति आदि बनाकर उसके गोद में रख दी और वेद मंत्रों से अभिमंत्रित कर प्रतिष्ठित कर दी, जो आगे चलकर धन्वंतरि कहलाए।
 

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