Edited By Jyoti,Updated: 19 Mar, 2021 12:19 PM
सम्राट अकबर के दरबार में बीरबल, तानसेन और अब्दुर रहीम खानखाना जैसे गुणी और नर-रत्न रहते थे। सम्राट उन सबका आदर करते थे
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सम्राट अकबर के दरबार में बीरबल, तानसेन और अब्दुर रहीम खानखाना जैसे गुणी और नर-रत्न रहते थे। सम्राट उन सबका आदर करते थे। रहीम के नीति-दोहे और भक्ति दोहे को सुनकर एक दरबारी भीतर ही भीतर जलता था। ऊपर से वह उनका मित्र बना रहता था। एक दिन उसे एक षड्यंत्र सूझा। उसने रहीम को भोजन पर आमंत्रित किया।
अब्दुर रहीम खानखाना अपने अंगरक्षक के साथ घोड़े पर सवार होकर मित्र के घर चल पड़े। रास्ते में एक बालक रो रहा था। रहीम ने बालक से रोने का कारण पूछा। उसने कहा-आप अपने मित्र के घर मत जाइए।
रहीम ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मैं अपने मित्र के घर जा रहा हूं?’’
‘‘मुझे पता है, वह आपको भोजन में विष मिलाकर मार डालना चाहता है।’’
तुम्हें कैसे पता चला कि वह विष देगा और बालक! यदि कोई आदर से विष भी दे तो उसे खा लेना चाहिए।
अमी पियावत मान बिनु, कह रहीम न सुहाय। प्रेम सहित मरिबौ भली, जो विष देय बुलाया।
बालक फिर रोने लगा। रहीम ने समझाते हुए कहा, ‘‘तू तो कृष्ण के समान हठी है।’’
तो समझ लीजिए मैं कृष्ण हूं। रहीम ने उस बालक में मोर मुकुट पीताम्बर वाले कृष्ण की छवि देखी। वे भाव-विभोर हो अचेत हो गए।
रहीम के मित्र को जब घटना का पता चला तो उसने क्षमा मांगते हुए कहा, ‘‘मित्र, मैं अपराधी हूं, मुझे प्राण दंड दीजिए। केवल इतना बता दीजिए कि विष देने की बात आपको किसने बताई।’’
‘‘श्री कृष्ण ने’’ रहीम पुन: भाव विभोर हो उठे।
इसके उपरांत सम्राट अकबर के हृदय में रहीम का सम्मान पहले से कहीं अधिक गहरा हो गया।