Edited By Jyoti,Updated: 03 Sep, 2020 06:58 PM
एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। अक्सर वह सुबह जल्दी जाग जाती थी लेकिन उस दिन थोड़ा देर से जागी।
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एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। अक्सर वह सुबह जल्दी जाग जाती थी लेकिन उस दिन थोड़ा देर से जागी। लोमड़ी जैसे ही अपने घर से बाहर आई तो उसकी पूंछ सूरज की ओर थी। छाया सामने पड़ रही थी। छाया देखकर लोमड़ी को पहली बार अपने शरीर का स्वरूप पता चला।
छाया में उसका रूप बहुत बड़ा दिखाई दे रहा था। तब लोमड़ी ने सोचा, क्यों न किसी बड़े जीव का शिकार किया जाए। बस, इसी भ्रम में वह इतनी उतावली हो गई कि घने जंगल में बड़े शिकार की चाह लिए पहुंच गई।
सूरज अब तक सिर पर चढ़ आया था। लोमड़ी को भूख भी बहुत लग रही थी। उसने सोचा क्यों न आज हाथी का शिकार किया जाए? भूखी लोमड़ी हाथी की तलाश में इधर-उधर भटकने लगी। वह थक गई और एक जगह आराम करने लगी लेकिन आसमान में सूर्य की दिशा बदल चुकी थी।
लोमड़ी को अपनी छाया छोटी दिखाई दे रही थी। लोमड़ी ने सोचा कि मेरा आकार तो इतना छोटा है क्यों न अब मैं छोटे जीव का शिकार करूं? मेरे लिए तो एक मेंढक ही काफी है। मैं बेकार में छाया के भ्रम के चलते इधर-उधर भटक रही थी। उसे जब इस बात का ज्ञान हुआ तो उसने अपने लिए एक छोटा शिकार किया और भोजन के बाद किसी पेड़ के नीचे गहरी नींद में सो गई।
यह एक प्रेरक कहानी है, इसका अर्थ है कि मनुष्य भी इसी तरह छाया रूपी अपनी इच्छाओं के पीछे जिंदगी भर भागता रहता है। जब उसे विवेक का ज्ञान होता है तो उसका दृष्टिकोण बदल जाता है और वह एक नई राह पर चल देता है जिसका रास्ता सकारात्मक पथ पर ईश्वर के घर की ओर जाता है।