Edited By Jyoti,Updated: 16 Sep, 2021 12:30 PM
ईसाई धर्म के संस्थापक जीसस क्राइस्ट (ईसा मसीह) एक बार केपर नगर में गरीबों के मोहल्ले में रहने लगे। उनके ही साथ भोजन करने लगे तो कुछ सिरफिरे लोगों ने आपत्ति की। इस पर ईसा ने कहा
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ईसाई धर्म के संस्थापक जीसस क्राइस्ट (ईसा मसीह) एक बार केपर नगर में गरीबों के मोहल्ले में रहने लगे। उनके ही साथ भोजन करने लगे तो कुछ सिरफिरे लोगों ने आपत्ति की। इस पर ईसा ने कहा, ‘‘वैद्य मरीजों को देखने जाएगा या स्वस्थ लोगों को? मैं पीड़ित और पतितों की सेवा करना चाहता हूं, इसलिए मेरा स्थान इन्हीं के बीच है।’’
एक गांव से गुजरते हुए कुछ लोगों ने उन्हें गालियां देनी शुरू कर दीं। इस पर ईसा ने ईश्वर से प्रार्थना की, ‘‘हे प्रभु, इन सबका भला हो।’’ एक ग्रामीण ने पूछा, ‘‘आप गालियों के बदले दुष्टों के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।’’
ईसा बोले, ‘‘मैं बदले में वही दे रहा हूं, जो मेरी गांठ में है, जो चीज मेरे पास है ही नहीं, वह मैं कहां से दूं?’’
एक बार एक सिरफिरे द्वारा धर्म क्या है? पूछने पर ईसा ने बताया, ‘‘अपने आप में अवस्थित रहना ही धर्म है।’’ उनकी शिक्षा थी तन-मन-धन से कार्य करने के साथ-साथ मनुष्य को धैर्य भी रखना चाहिए, तभी परिश्रम के फल की प्राप्ति होगी।
33 वर्ष की आयु में उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया। कहते हैं, वह तीन दिन बाद पुन: जीवित हो गए और फिर 12 शिष्यों के साथ 40 दिन तक निर्जन प्रदेशों में रहे। अंत में शुक्रवार के दिन उनका स्वर्गारोहण हुआ। संध्या समय उनका शरीर कफन से लपेट कर चट्टान में खोदी कब्र में दफनाया गया और प्रभु ईसा स्वर्ग की ओर चले गए। उनके द्वारा स्थापित ईसाई धर्म विश्वभर में फैला; बाइबल उनका पवित्र ग्रंथ है। इसमें ईसा की यह प्रतिज्ञा चरितार्थ होती है, ‘‘मैं संसार के अंत तक सदा तुम्हारे साथ हूं।’’
ईस्वी सन् की शुरूआत ईसा के जन्म से ही हुई।