धार्मिक प्रसंग: खुद को नकारात्मक सोच से बंधने न दें

Edited By Jyoti,Updated: 12 Oct, 2021 06:39 PM

dharmik katha in hindi

एक दिन एक व्यक्ति सर्कस देखने गया। वहां जब वह हाथियों के बाड़े के पास से गुजरा तो एक ऐसा दृश्य देखा कि वह हैरान रह गया। उसने देखा कि कुछ विशालकाय हाथियों को मात्र उनके सामने के पैर में रस्सी

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एक दिन एक व्यक्ति सर्कस देखने गया। वहां जब वह हाथियों के बाड़े के पास से गुजरा तो एक ऐसा दृश्य देखा कि वह हैरान रह गया। उसने देखा कि कुछ विशालकाय हाथियों को मात्र उनके सामने के पैर में रस्सी बांधकर रखा गया है। उसने सोच रखा था कि हाथियों को अवश्य बड़े पिंजरों में बंद कर रखा जाता होगा या फिर जंजीरों से बांधकर लेकिन वहां का दृश्य तो बिल्कुल उलट था।

उसने महावत से पूछा, ‘‘भाई, आप लोगों ने इन हाथियों को बस रस्सी के सहारे बांधकर रखा है, वह भी उनके सामने के पैर को? ये तो इस रस्सी को बड़े ही आराम से तोड़ सकते हैं। मैं हैरान हूं कि ये इसे तोड़ क्यों नहीं रहे?’’

महावत ने उसे बताया, ‘‘ये हाथी जब छोटे थे, तब से ही हम उन्हें इतनी ही मोटी रस्सी से बांधते आ रहे हैं। उस समय इन्होंने रस्सी तोडऩे की बहुत कोशिश की लेकिन ये छोटे थे इसलिए रस्सी को तोड़ पाना इनके सामथ्र्य से बाहर था। वे रस्सी तोड़ नहीं पाए और ये मान लिया कि रस्सी इतनी मजबूत है कि यह उसे नहीं तोड़ सकते। आज भी इनकी वही सोच बरकरार है। इन्हें आज भी लगता है कि वे रस्सी नहीं तोड़ पाएंगे। इसलिए वे प्रयास भी नहीं करते।’’

प्रसंग का सार यह है कि उन हाथियों की तरह हम भी नकारात्मक सोच रूपी रस्सी से बंध जाते हैं। किसी काम में प्राप्त हुई असफलता को हम मस्तिष्क में बिठा लेते हैं और यकीन करने लगते हैं कि एक बार किसी काम में असफल होने के बाद उसमें कभी सफलता प्राप्त नहीं होगी। आवश्यकता है इस सोच से बाहर निकलने की। 

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