Edited By Jyoti,Updated: 05 Mar, 2022 11:07 AM
एक राजा संत-महात्माओं का बड़ा आदर करता था। एक बार उसके राज्य में किसी सिद्ध संत का आगमन हुआ। राजा ने अपने सेनापति को उन्हें सम्मान सहित दरबार में लाने का आदेश दिया।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एक राजा संत-महात्माओं का बड़ा आदर करता था। एक बार उसके राज्य में किसी सिद्ध संत का आगमन हुआ। राजा ने अपने सेनापति को उन्हें सम्मान सहित दरबार में लाने का आदेश दिया। सेनापति एक सुसज्जित रथ लेकर संत के पास पहुंचा। राजा के आमंत्रण की बात सीधे कहने के स्थान पर सेनापति ने विनम्रता से सिर झुकाकर अभिवादन करने के बाद कहा, ‘‘हमारे महाराज ने प्रणाम भेजा है। यदि आप अपनी चरणरज से उनके आवास को पवित्र कर सकें तो बड़ी कृपा होगी।’’
संत राजमहल में चलने को तैयार हो गए। संत अत्यंत नाटे कद के थे। उन्हें देखकर सेनापति को यह सोचकर हंसी आ गई कि इस ठिगने व्यक्ति से उनका लम्बा-चौड़ा और बलिष्ठ राजा आखिर किस तरह का विचार-विमर्श करना चाहता है? संत सेनापति के हंसने का कारण समझ गए। जब संत ने सेनापति से हंसने का कारण पूछा तो वह बोला, ‘‘आप मुझे क्षमा करें। वास्तव में आपके कद पर मुझे हंसी आई, क्योंकि हमारे महाराज बहुत लम्बे हैं, उनके साथ बात करने के लिए आपको तख्त पर चढ़ना पड़ेगा।’’
यह सुनकर संत मुस्कराते हुए बोले, ‘‘मैं जमीन पर रहकर ही तुम्हारे महाराज से बात करूंगा। छोटे कद का लाभ यह होगा कि मैं जब भी बात करूंगा, सिर उठाकर करूंगा लेकिन तुम्हारे महाराज लम्बे होने के कारण मुझसे जब भी बात करेंगे, सिर झुकाकर करेंगे।’’
सेनापति को संत की महानता का आभास हो गया कि श्रेष्ठता कद से नहीं, अच्छे विचारों से आती है।