परमात्मा धन संपत्ति का नहीं, निष्ठा का भूखा है

Edited By Jyoti,Updated: 28 May, 2022 12:13 PM

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शौरपुच्छ नामक  व्यापारी ने एक बार भगवान बुद्ध से कहा, ‘‘भगवान मेरी सेवा स्वीकार करें। मेरे पास एक लाख स्वर्ण मुद्राएं हैं, वह सब आपके काम आएंगी।’’

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शौरपुच्छ नामक  व्यापारी ने एक बार भगवान बुद्ध से कहा, ‘‘भगवान मेरी सेवा स्वीकार करें। मेरे पास एक लाख स्वर्ण मुद्राएं हैं, वह सब आपके काम आएंगी।’’ 

बुद्ध कुछ न बोले चुपचाप चले गए। कुछ दिन बाद वह पुन: तथागत की सेवा में उपस्थित हुआ और कहने लगा, ‘‘देव! यह आभूषण और वस्त्र ले लें, दुखियों के काम आएंगे, मेरे पास अभी बहुत-सा धन बचा है।’’

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 बुद्ध बिना कुछ कहे वहां से उठ गए। शौरपुच्छ बड़ा दुखी था कि वह गुरुदेव को किस तरह प्रसन्न करे।

म्मेलन था हजारों व्यक्ति आए थे। बड़ी व्यवस्था जुटानी थी। सैंकड़ों शिष्य और भिक्षु काम में लगे थे। आज शौरपुच्छ ने किसी से कुछ न पूछा, काम में जुट गया। रात बीत गई, सब लोग चले गए, पर शौरपुच्छ बेसुध कार्य-निमग्न रहा।

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बुद्ध  उसके पास पहुंचे और बोले, ‘‘शौरपुच्छ, तुमने प्रसाद पाया या नहीं।’’ 

शौरपुच्छ का गला रुंध गया। भाव-विभोर होकर उसने तथागत को सादर प्रणाम किया। बुद्ध ने कहा, ‘‘वत्स, परमात्मा किसी से धन और सम्पत्ति नहीं चाहता, वह तो निष्ठा का भूखा है। लोगों को निष्ठाओं में ही वह रमण किया करता है, आज तुमने स्वयं यह जान लिया।’’

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